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वाराणसीः कोरिया गणराज्य के 108 बौद्ध तीर्थयात्री सांगवोल सोसाइटी ऑफ साउथ कोरिया द्वारा आयोजित पैदल यात्रा के हिस्से के रूप में 43 दिनों में 1,100 किलोमीटर से अधिक की पैदल यात्रा कर रहे हैं. इसी क्रम में यह दल शुक्रवार को वाराणसी पहुंचा और संध्याकाल में धमेख स्तूप व चौखण्डि स्तूप का भ्रमण किया गया. शनिवार को सुबह में दल के सभी लोग मुख्य पूजा में भाग लेंगे.

भारत और दक्षिण कोरिया के बेहतर संबंध के 50 वर्ष पूरा होने के उपलक्ष में कोरिया से आए 108 बौद्ध भिक्षु का दल सारनाथ से बौद्ध परिपथ के रूप में श्रावस्ती तक समस्त बौद्ध स्थलों तक पैदल यात्रा करेगा. इस यात्रा की शुरुआत 11 फरवरी को सुबह सारनाथ के धमेख स्तूप के समक्ष पूजा अर्चना के पश्चात शुरू होगी जो कि प्रथम पड़ाव के रूप में रामनगर के मल्टीमॉडल टर्मिनल पर होगी. इसके बाद यह यात्रा आगे बिहार के लिए रवाना होगी.

इस तीर्थयात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच मित्रता और सहयोग को बढ़ाना है. पर्यटक भारत में उत्तर प्रदेश और बिहार स्थित बौद्ध तीर्थ स्थलों की यात्रा करेंगे और बाद में नेपाल जाएंगे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सोच है कि भारत में बौद्ध पर्यटन सर्किट को दुनिया भर में प्रचारित किया जाए. इस सर्किट का उद्देश्य पर्यटकों को भगवान बुद्ध की शिक्षाओं के बारे में जानने में मदद करना और बुद्ध के जीवनकाल के दौरान उनके पदचिह्नों की खोज करना है. तीर्थयात्रा के दौरान कवर किए जाने वाले स्थलों में बुद्ध के जन्म से लेकर उनके परिनिर्वाण तक का जीवन शामिल है.

पर्यटक 9 फरवरी से 23 मार्च, 2023 तक भारत और नेपाल स्थित पवित्र बौद्ध स्थलों के 43 दिनों की यात्रा पर रहेंगे. 'ओह, वी! ओह लव! ओह, लाइफ!’ के नारे के साथ सांगवोल सोसायटी द्वारा आयोजित तीर्थयात्रा का उद्देश्य भारत की तीर्थयात्रा के माध्यम से भक्ति संबंधी गतिविधियों की बौद्ध संस्कृति का प्रसार करना है, जहां बुद्ध का जीवन और पदचिह्न संरक्षित हैं.

यह अवसर भारत की जी-20 की अध्यक्षता के साथ-साथ आया है. यात्रा के दौरान कोरिया के तीर्थयात्री आठ प्रमुख बौद्ध पवित्र स्थलों को नमन करेंगे और साथ ही भारतीय बौद्ध धर्म और संस्कृति से अवगत होंगे. 43 दिन की यात्रा के दौरान धार्मिक नेताओं की द्विपक्षीय बैठक होगी और विश्व शांति के लिए प्रार्थना सभा और जीवन की गरिमा के लिए आशीर्वाद समारोह आयोजित करेंगे. यह दल 8 और 9 मार्च 2023 को कुशीनगर की यात्रा पर रहेगा जहां भगवान बुद्ध ने परिनिर्वाण में प्राप्त किया.

रिपोर्ट- जगदीश शुक्ला

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