Shaurya News India
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चंदौलीः ख्यालगढ़ लौंदा  में चल रहे संगीतमय सात दिवसीय श्रीमद् भागवत् कथा के विश्राम दिवस कथा पूर्व हवन आदि सम्पन्न हुआ. तत्पश्चात आयोजित विशाल भंडारे मे हजारों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया. अंतिम दिवस की कथा श्रवण कराते हुए श्रीमद् भागवत् व श्री मानस मर्मज्ञ श्रद्धेय श्री अखिलानन्द जी महाराज ने भगवान कृष्ण के विवाह प्रसंग पर चर्चा करते हुए कहा कि रूक्मिणी जी लक्ष्मी स्वरूपा हैं जो नारायण का ही वरण करती हैं. रूक्मिणी विवाह में शिशुपाल वर के रूप मे आता है लेकिन रूक्मिणी द्वारिकाधीश का ही वरण करती हैं. भगवान कृष्ण जब द्वारिकापुरी से विदर्भ देश के कुंडिनपुर आते हैं तो जीतेन्द्रीय बनकर आते हैं और शिशुपाल कामी बनकर आता है. लक्ष्मी की प्राप्ति कामी नहीं बल्कि जीतेन्द्रीय को होती है. सांसारिक जीवों के लिए लक्ष्मी नारायण की हैं अर्थात हमारी मां हैं यदि लक्ष्मी को  मां रूप में हम रखते हैं तो लक्ष्मी कल्याणकारी व सुख प्रदान करने वाली होती हैं.

 शास्त्रों में लक्ष्मी के तीन स्वरूप बताए गये हैं. पहला लक्ष्मी, दूसरा महालक्ष्मी व तीसरी अलक्ष्मी. लक्ष्मी स्वरूपा वो धन होता है जो धर्म व अधर्म दोनो प्रकार से होता है जो उसी में खर्च होता है. महालक्ष्मी स्वरूपा वो धन केवल धर्म से आता है और धर्म में ही खर्च हता है. अलक्ष्मी धन उसे कहते हैं जो केवल अधर्म से आता है जो अधर्म में ही खर्च होता है. कहने का आशय है कि हम जिस प्रकार धन प्राप्त करते हैं वह धन उसी कार्य मे खर्च होता है. इसलिए मानव को सदैव ध्यान रखना चाहिए की वह धर्म पूर्वक ही धन ग्रहण करें. भगवान श्री कृष्ण विवाह पर उन्होंने ने कहाँ की द्वारिकाधीश का विवाह रूक्मिणी जी के साथ साथ जामवंती ,सत्यभामा,लक्ष्मणा, कालिन्दी के विवाह पर विशेष रूप से प्रकाश डाला महाराज जी ने कहाँ कि भगवान कृष्णा का ग्यारह सौ आठ विवाह सम्पन्न हुआ. सुदामा चरित्र पर उन्होंने कहा कि भगवान भक्त के आधीन होते हैं सुदामा जी बाल सखा भी है और परम भक्त भी.

 जीव यदि निष्काम भक्ति करता है तो भगवान को प्रिय हो जाता है. जो अनन्य भाव से भक्ति करता है तो भगवान उसके सुखदुख के साथी हो जाते है. सुदामा की दशा को देख कर अपनी करूणा द्वारा अनुग्रह करके अपने को धन्य करते है. इसीलिए सभी मार्गों में भक्ति मार्ग महाश्रेष्ठ बताया गया है. सुदामा जी सदैव धर्म का पालन करते हुए भगवान की आराधना करते है और ऐसा मानते है कि भगवान जैसे रखते है वैसे रहते है. यदि जीव को जीवन में दुख  हो तो उसे भगवान के शरणागत हो जाना चाहिए जबकि सुख में भगवान के कृपा की अनुभूति करनी चाहिए.

 कथा के अंत में परीक्षित मोक्ष पर बोलते हुए कहा कि श्रीमद् भागवत् महापुराण भगवान की वांगमयी मूर्ति है. शुकदेव जी महाराज धर्म सम्राट महाराज परीक्षित को भागवतामृत का रसपान कराते हैं. कथा का विश्राम दिवस था महाराज परीक्षित के ह्रदय से दिव्य तेज निकल कर आकाश में विलीन हो गया.

 मुख्य यजमान जितेन्द्र नारायण पाण्डेय व मीरा पाण्डेय रहें। मौके पर विकास चौबे, आलोक पाण्डेय, सन्तोष पाठक, मोहित पाण्डेय, विपिन चौबे, पंडित पवन जी,शिवम साण्डिल्य, धन्नू चौबे, नरेंद्र सिंह, रामहरख यादव, कपिल सिंह,पवन चौबे, जोगिंदर सिंह, एसपी सिंह, संक्रमण तिवारी (सोनू), विजय यादव, संदीप पटेल आदि मौजूद श्रोताओं ने कथा श्रवण कर भाव विभोर हुए.


 

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