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आगरा: विश्व संवाद केन्द्र ब्रज प्रांत द्वारा आयोजित ब्रज साहित्य उत्सव के दूसरे दिन आज तीन सत्रों में राष्ट्र की समृद्धि में हिन्दू अर्थशास्त्र की प्रासंगिता, पर्यावरण संरक्षण की भारतीय अवधारण और ‘स्व’ आधारित राष्ट्र के नवोत्थान का संकल्प विषयों पर सारगर्मित चर्चा की गई। नासिक से आये अर्थशास्त्री प्रोफेसर विनायक गोविलकर ने भारतीय और अभारतीय अर्थशास्त्रों का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारतीय अर्थशास्त्र के दृष्टिकोण की प्रासंगिकता विश्व स्तर पर स्वीकार की जा रही है। उन्होंने  इस संदर्भ मं नोवेल पुरस्कार विजेता रिचर्ड आदि के कार्यों का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में  डी0जी0पी0 की दर से राष्ट्र की समृद्धि तय करते हैं। उन्होंने ने वस्तु, सेवा, साधन, उपकरण आदि घटकों पर चर्चा करते हुए कहा कि भारतीय चिन्तन संसाधनों के मार्यादित उपभोग पर बल देता है। 


उन्होंने आर्थिक विकास की अवधारण के संदर्भ में आधुनिक आर्थिक चिंतक एडम स्मिथ आदि के विचारों पर प्रकाश डाला। उन्होेंने ने पाश्चात्य अर्थशास्त्र के स्तंभ, संघर्ष, व्यक्ति का स्वातंत्र, शासन का न्यूनतम हस्तक्षेप, सम्पत्ति की निजी मालिकी का विश्लेषण करते हुए कहा कि वर्तमान परिस्थिति में केवल भारतीय हिन्दू आर्थिक विचार ही शाँति और सुख दे सकता है। श्री गोविलकर ने हिन्दू अर्थशास्त्र के ग्रंथों और श्री सूत्र के श्लोक का संदर्भ देते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में पर्यावरण की महत्ता भी बतायी गयी है। उन्होंने  कार्बन उत्सर्जन पर चिंता प्रकट करते हुए कहा कि उत्पादन का चक्र उलट गया है। 

उत्पादन माँग के अनुरूप न होकर केवल लाभ के लिए हो रहा है। प्रो. इंदू वाष्र्णेय ने ग्रामीण और घरेलू अर्थव्यवस्था की चर्चा करते हुए कहा कि प्राचीन भारत हमेशा से आत्म निर्भर रहा है। उन्होंने भारतीय घरेलू अर्थव्यवस्था का विश्लेषण किया। प्राचीन शास्त्रों अर्थशास्त्र विभिन्न स्मृतियों के संदर्भ देते हुए हिन्दू अर्थशास्त्र की महत्ता बताई। उन्होंने कहा कि मातृशक्ति ने इसे अक्षुण्य बना रखा है। प्रोफेसर वेद प्रकाश त्रिपाठी तथा प्रख्यात लेखक डाॅ. सरवन बघेल ने हिन्दू धर्मशास्त्र और पण्डित दीनदयाल उपाध्याय ने अंत्योदय और एकात्मकता पर विस्तार से चर्चा की। 

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