नई दिल्ली : महाराष्ट्र समेत पूरे देश में आज ‘गणपति बप्पा मोरया…’ की गूंज सुनाई देगी। गणेश चतुर्थी के मौके पर प्रथम पूज्य गणेश जी की पूजा-आराधना कर लोग धूमधाम से ये त्योहार मनाते हैं। भगवान गणेश की पूजा से कई संकेत जुड़े हैं। भगवान गणेश को ज्ञान, लेखन, यात्रा, वाणिज्य और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में गणपति की आराधना का आध्यात्मिक महत्व क्या है ? ये समझना जरूरी है। बदलते जमाने में आध्यात्म से जुड़े पहलुओं पर युवा कलाकार एकलव्य सकपाल ने अपनी बेबाक राय शेयर की।
एकलव्य सकपाल उभरते हुए सितारे के साथ-साथ एक स्थापित कलाकार और जाने-मानें माइथॉलजिस्ट भी हैं। फुल टाइम फिल्ममेकर एकलव्य इन दिनों म्यूजिक में भी अपना वर्चस्व स्थापित कर रहे हैं। एकलव्य सकपाल का पहला गीत, ‘शिव की धुन' एक महीने के अंदर ही एक लाख से अधिक व्यूज पार कर चुका है। महादेव की लोकप्रिय प्रस्तुति- ‘शिव की धुन’ में एकलव्य कंपोजर, गायक और लिरिसिस्ट के सात-सात म्यूजिक डायरेक्टर भी हैं। आने वाले दिनों में अपने प्रोजेक्ट के बारे में एकलव्य बताते हैं कि महादेव के कुछ और ऐसे ही गाने तैयार करने पर काम जारी है। उम्मीद है कि आने वाले दिनो में महादेव के वो गीत भी रिलीज होंगे।
भगवान के त्योहार को सेलिब्रेट करने को लेकर एकलव्य सकपाल ने कहा, हम जिसे प्रदर्शन समझ रहे हैं हो सकता है वह प्रदर्शन नहीं होकर लोगों की अपनी आस्था हो। भारत में चारों ओर घने जंगलो से घीरा एक ऐसा गांव है जहां सिर्फ शिव की पूजा होती है। जब मैंने उन लोगों की पूजा करने का विधान देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि भक्ति की कभी कोई निर्धारित परिभाषा नहीं हो सकती। यह आदिवासी समुदाय शिवलिंग के साथ अत्यंत अभद्र व्यवहार करते हैं। उनका मानना यह है कि जब वह ऐसा करेंगे तो शिव की दृष्टि उन पर जल्दी पड़ेगी। भले ही शिव क्रोधित हो जाए कम से कम शिव को पता तो चलेगा कि कोई आदिवासी समुदाय है जो उन्हें हर पल याद करता रहता है। दरअसल यह भक्त और भगवान के आपस की बात है और हमें इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ना चाहिए। जब तक कि हमें हमारी खुद की भक्ति पर कोई संदेह ना हो। भगवान तक पहुंचने के कई सारे रास्ते हैं जरूरी नहीं कि सिर्फ हमारा रास्ता सही हो और बाकियों का गलत। है ना ?
आप पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में ट्रैवल और कॉमर्स में गणपति भूमिका पर एकलव्य सकपाल ने कहा कि, मैं पर्सनल बात करूं तो, मेरे दिन और काम की शुरुआत गणपति के नाम से ही होती है। मेरे परिवार में जितने वाहन हैं उन सब में गणपति जी की प्रतिमा स्थापित है। वैदिक संस्कृति में स्वर-ध्वनि शास्त्र का एक विशेष महत्व है। प्राचीन काल से ही लोगों का नामकरण स्वर- ध्वनि शास्त्र के आधार पर किया जाता रहा है। गणपति के नाम का बार-बार उच्चारण बुद्धि के विस्तार में मदद करता है। यह एक वैज्ञानिक बात है। प्राचीन काल से ही ध्वनि से लोगों का उपचार हो रहा है। मंदिर में होने वाली आरती, मंत्र उच्चारण, श्लोक और स्त्रोत्म सब किसी ना किसी प्रकार से मनुष्यों को एक सफल जीवन देने के प्रास हैं हमारे स्नातन संस्कृति द्वारा।
स्वर ध्वनि शास्त्र के अनुसार गणपति का नाम दिमाग का विस्तार करता है। पूर्वाग्रह खत्म होते हैं। ज्ञान विकसित होता है। मंत्र या देवी देवताओं के नाम किसी ना किसी खास कारण से अस्तित्व में हैं। स्वर-ध्वनि शास्त्र के बारे में लोगों को जानकारी नहीं है। मुझे वरदान में प्राप्त ये मेरा ज्ञान अपने आप में गणेश जी के नाम जाप का ही पहल है।
गणपति की मूर्ति पूजा संभव न हो सके तो विवेक यानी बुद्धि का इस्तेमाल करने पर एकलव्य सकपाल ने कहा कि विवेक का इस्तेमाल भी गणेश पूजा है- ये कहना अक्सर उन लोगों का होता है जो वास्तव में खुद अत्यंत आलसी, अपने कर्तव्य से मुंह फेरने में माहिर और एक बहाने बाज हो। आप इसे समझने की कोशिश करें, अगर किसी को भगवान को खोजने हिमालय नहीं जाना तो वह कहेगा भगवान मेरे अंदर है। सोचने की बात ये है कि यदि भगवान तुम्हारे अंदर हैं तो फिर द्वेष, कपट, ईर्ष्या, लालसा और अहंकार ये सब कहां है ? भगवान इन सब हीन दोषों के साथ हमारे साथ नहीं रह सकते हैं।
वैदिक संस्कृति में पूजा पाठ का एक अत्यंत महत्वपूर्ण विधान है। तमाम क्रियाएं वैज्ञानिक द्रिस्टीकोण पर आधारित हैं। कुछ भी बिना कारण नहीं हैं। अगर किसी को पूजा पाठ में कोई रुचि ना हो तो हजार बहाने बनाए जा सकते हैं।
इको फ्रेंडली गणेश पूजन पर एकलव्य सकपाल ने कहा, कोरोना महामारी अपने आप में एक दैविक कारण हो सकता है। धरती को भी समय समय पर शुद्धिकरन की अवश्यक्ता है। यह ब्रह्मांड अपना काम ठीक से कर रहा है। मनुष्य को इस बात का एहसास नहीं है कि हमारे काम पर्यावरण को कैसे प्रभावित कर रहे हैं। अगर एहसास हो जाए तो पर्यावरण को दूषित करने वाले काम नहीं किए जाएंगे। अगर एनवायरमेंट से खिलवाड़ होता रहा तो नेचर अपने हिसाब से शुद्धिकरण करेगी। बिगड़ती चीजों को संभालना या रोकना मनुष्य के हाथ में है। अगर रोक सकें तो बहुत ही अच्छी बात होगी।
इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमा लाना एक बहुत ही सुंदर कल्पना है। गणपति जी की प्रतिमा को घर लाना एक सुखमय और मंगलमय उर्जा को घर लाने जैसा एहसास होता है। नेचुरल तरीके से विसर्जन करना आसान एवं उचित होता है। मेरे खुद के घर में इको फ्रेंडली गणेश जी की पूजा होती है। एक छोटे से बर्तन या टब में विसर्जन करने से इको फ्रेंडली मूर्ति की मिट्टी पानी में आसानी से घुल जाती है। इसके बाद उस मिट्टी घुले हुए पानी को घर के बाहर वाले पौधों में डाल दिया जाता है। हमारी मान्यता है कि गणेश जी बुद्धि के देवता हैं। ये पानी पौधों में डालने से ऐसे अनुभूती होती है कि बप्पा हमारे साथ ही है और जैसे जैसे उस परिसर के पौधे बढ़े होते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि स्वंय गणेश जी से हमें बुद्धि का वरदान प्राप्त हो रहा है।
मिट्टी के कलाकारों की मदद को लेकर उन्होंने कहा कि व्यक्ति का व्यवसाय उनका अपना एक व्यक्तिगत चुनाव होता है। किसी की पर्सनल लाइफ में क्यों इंटरफियर करना है ? वैसे ब्रह्मांड में जो भी होता है उसके पीछे कोई ना कोई दैविक कारण होता है। हम अगर किसी की मदद करने जा रहे हैं तो यह नेचुरल प्रोसेस में हस्तक्षेप जैसा है। यदि ब्रह्मांड ने किसी को किसी चीजों से वंचित रखा है तो इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं। पहला- ब्रह्मांड उस व्यक्ति को मजबूत बनाकर आने वाले कल के लिए तैयार कर रहा है। या दूसरा कारण- उस व्यक्ति के पूर्व जन्म का यह कोई फल है। ब्रह्मांड को अपना काम सही तरीके से करने आता है। इसलिए हमें कभी उसके कार्य में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
आध्यात्म, पूजा-पाठ के अलावा गणपति से जुड़े संकेतों से युवाओं को जोड़ने पर एकलव्य सकपाल ने कहा, इंसान को शरीर के लिए खाना, पानी और नींद की ज़रूरत होती हैं। शरीर के अलावा आत्मा की भी कुछ जरूरतें हैं। हमारी वैल्यू आत्मा के कारण है। शारीरिक सौंदर्य के लिए अच्छे कपड़े और मेकअप का सहारा ले सकते हैं। आत्मा के लिए आध्यात्म ही एकमात्र आहार है। अपनी आध्यात्मिक यात्रा पर आगे बढने के लिए खुद के साथ वक्त बिताना सबसे अहम है। बिना कुछ किए, बस सतर्कता से खुद में रहना।
हमारा शरीर एक मंदिर है। शरीर में जो आत्मा है वह परमात्मा से कम नहीं है। इस आधार पर अपने से अधिक महत्व किसी और को नहीं देना चाहिए। आत्मा को महत्व देने पर भविष्य में किसी भी बात का अफसोस नहीं होगा। हमारी आत्मा को कई जन्मों का अनुभव होता है। आत्मा के साथ बैठने पर आपको इस जन्म में भी वो सारे अनुभव मिलने लगेंगे। आप इन अनुभवों से अपने जीवन को आसान बनाकर जो भी चाहें वो हासिल कर सकते है।
गणेश पूजा से जुड़े संकेतों की मदद से टकराव रोकने पर एकलव्य सकपाल का जवाब- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बात करें तो हर दिन का अपना एक महत्व है। हफ्ते के सात दिन सात अलग- अलग ग्रहों को समर्पित हैं। जैसे सोमवार को चांद का, मंगलवार को मंगल ग्रह का प्रभाव अधिक होता है। बुध को प्रिंस प्लैनेट कहा जाता है। किसी की कुंडली में बुध मजबूत होने पर चीजें आसानी से उसे मिलने लगती हैं। बुधवार के दिन गणपति पूजन का वैज्ञानिक कारण ये है कि शांत चित्त होकर ऊं गण गणपतये नम: का जाप करने से आपकी बुद्धि का विस्तार होगा। जैसे बुद्धवार का दिन बुद्ध ग्रह के प्रभाव में होता है, इस कारण इसे मंत्र के जाप से इंद्रियों को सक्रिय किया जा सकता है। आपको कई रास्ते खुलने लगेंगे। सही गलत का फैसला बेहतर तरीके से किया जा सकेगा। बेहतर समझ विकसित होने पर आप कोई भी ऐसा काम नहीं करेंगे जिसमें आपका नुकसान हो। एक राजकुमार जिस तरीके से अपना जीवन व्यतीत करता है वैसे ही बुध ग्रह के प्रभाव से आप व्यतीत कर सकेंगे।
इस साल गणेश पूजा को मनाने पर एकलव्य सकपाल ने कहा, भगवान शिव मेरे आराध्य हैं। मेरे लिए हर दिन सोमवार, हर रात्री शिवरात्री और हर महीना सावन का महीना है। गणेश, भगवान शिव के बेटे हैं। और उनके सात मेरा एक अलग ही रिश्ता है। गणपति बप्पा सही मायनों में मेरे एकलौते दोस्त हैं। मैं बचपन से ही बप्पा की मूर्ति देखकर उनके प्रति एक खिचाव महसूस करता आ रहा हूं। तो ऐसे में गणेश पूजन के दिन मेरे लिए कुछ खास हो ऐसा नहीं है, क्यूँकि मेरे जीवन की हर सुभा गणपति पूजन से ही शुर होती है। बचपन से ही मेरे दिमाग में ये बात है कि कोई भी काम करूँ तो गणेश जी का नाम लेकर ही उस काम को शुरू कारु। हमारे घर में गणपति उत्सव सात दिनों तक मनाया जाता है। मैं इन दिनो का इंतजार विशेष तौर पर गणपति के प्रसाद अर्थात मोदक के लिए अवश्य करता हूं।