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वाराणसीः विश्व के सबसे प्राचीन जीवंत शहर काशी की पावन धरती  पर आयोजित काशी-तमिल संगमम् में केंद्रीय संचार ब्यूरो, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत  सरकार द्वारा  बीएचयू के एम्फीथियेटर मैदान में आज़ादी का अमृत महोत्सव पर लगाई गई प्रदर्शनी

हर आयु वर्ग को आकर्षित कर रही है.


प्रतिदिन हजारों की संख्या में छात्र, युवा, व्योवृद्ध, शिक्षक, महिलाए, किशोरियाँ, अपने माता -पिता भाई- -बहन  के साथ  आकर  प्रदर्शनी  का अवलोकन कर रहे हैं, सेल्फी ले रहे हें साथ  ही चित्रों के साथ अंकित जानकारी को मोबाइल में कैद कर रहे हैं.


केंद्रीय संचार  ब्यूरो, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार नई दिल्ली मुख्यालय के महानिदेशक मनीष देशाई  के मार्गदर्शन में  लगाई  गई यह प्रदर्शनी एक भारत-श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना को बखूबी साकार कर रही है. प्रदर्शनी देखने  के लिए 80 की उम्र पार कर चुके कुछ गणमान्य व्यक्ति भी आर रहे हैं, इस प्रदर्शनी  को देख उनके  मस्तिष्क में स्वतंत्रता आंदोलन की घटनाएं  ताज़ा हो जा रही हैं. अवकाश प्राप्त मेजर एन इस वामिक ने बताया कि 1947 में जब  देश आज़ाद हुआ था तो जगह -जगह प्रभात फेरियां निकलती  थीं  जिसमें वह भी  शामिल होते थे. यह प्रदर्शनी देख वह दृश्य मन में ताज़ा हो गया, उन्होंने कहा कि यह प्रदर्शनी तीन पीढ़ियों के लिए उपयोगी साबित हो रही है. 84 वर्षीय गुलशन राय और 89 वर्षीय  प्रहलाद खंडेलवाल ने स्वतंत्रता सेनानियों, समाज सुधारकों  के एक एक चित्र को देख कर भाव विभोर  हो गये. छोटेबच्चों को गांधी जी खूब  भा  रहे है. वहीं युवा वर्ग में साऊथ के सिनेमा कलाकारों  हेमामालिनी, रेखा, श्रीदेवी रजनीकांत के साथ  सेल्फी लेने की होड़ लगी है.


दरअसल, इस प्रदर्शनी में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े चित्रो को दर्शाते ऐसे पोस्टर लगाए गए हैं जो लोगों इस संगमम में आने वाले तमिल प्रतिनिधिमंडल और काशीवासियों को अपने सुनहरे अतीत से वाकिफ करा रहे हैं. यह प्रदर्शनी विद्यार्थियों के लिए प्रेरणादायी साबित हो रही है विद्यार्थी ऐतिहासिक घटनाओं और महापुरुषों के बारे में प्रदर्शित सूचनाओं  संकलित  कर रहे हैं .  


इस प्रदर्शनी के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन में तमिलनाडू के योगदान को पोस्टर के माध्यम से बखूबी समझाने का प्रयास किया गया है. इस प्रदर्शनी को देखने के लिए विभिन्न विद्यालयों के छात्रों का हुजुम उमड़ रहा है. इस प्रदर्शनी में देश के निर्माण में प्रमुख योगदान देने वाले महापुरुषों, नायकों और कलाकारों की जानकारी भी साझा की गई है.


वर्ष 1700-1857 तक की क्रांति के काल को ईस्ट इंडिया कंपनी का कुशासन, "सुलगने लगी भारतीय स्वाधीनता की चिंगारी"  के माध्यम से उस दौरान के नायकों का चित्रण व उनके योगदान को बताया गया है. साथ ही स्वामी विवेकानंद तथा राजा राम मोहन राय, राम कृष्ण परमहंस, सावित्री बाई फूले, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष डब्ल्यू.सी.बनर्जी, ईश्वर चंद्र विद्यासागर सहित अनेक विभूतियों का भी चित्रण किया गया है.


इसके अलावा एकजुट हुई कई आवाजें और जाग उठा भारतीय राष्ट्रवाद के माध्यम से उन विभूतियों का चित्रण किया गया है. जिन्होंने हिंदुस्तान को आजाद कराने की अलख जगाने का प्रयास शुरू किया. लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक जैसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का भी उल्लेख है. स्वातंत्र्य आंदोलन में आक्रामक दृष्टिकोण रखने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के उदय का दृष्टांत भी है. जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विदेशी सामानों के बहिष्कार व स्वदेशी अपनाने का आंदोलन चलाया.


 प्रदर्शनी में राष्ट्रपिता मोहन दास करमचंद गांधी के स्वदेश लौटने और स्वतंत्रता आंदोलन को नया मोड़ देने का दृष्टांत भी लोगों को खूब आकर्षित कर रहा है, जिसमें ये दर्शाया गया है कि बापू ने कैसे स्वतंत्रता आंदोलन को गति प्रदान की. इस अवधि में स्वतंत्रता आंदोलन में एक बड़ा बदलाव देखा गया. दर्शक प्रदर्शनी को ज्ञान भंडार  बता रहे हैं .

रिपोर्ट- जगदीश शुक्ला

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