
वाराणसीः आज मां दुर्गा के पंचम स्वरूप मां स्कंदमाता की उपासना नवरात्रि के पांचवें दिन की जाती है. स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम दिया गया है. माता को अच्छा लगता है जब कोई उन्हे उनके पुत्र के नाम से पुकारता है इसलिए माता का नाम स्कंदमाता पड़ा, पुराणो के अनुसार तरकासुर नाम का राक्षस था जिससे केवल माता पार्वती और भगवान शिव का पुत्र वध कर सकता था. माता पार्वती ने स्कंद रुप धारण करके भगवान कार्तिकेय को युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया था.
भगवान स्कंद (कार्तिकेय) बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं. मां स्कंदमाता का वाहन सिंह है. मानयता है कि स्कंदमाता की आराधना करने से सन्तान सुख की प्राप्ती होती है, साथ ही घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है.
पूजन विधि-
सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर स्कंदमाता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें. इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें. चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर कलश रखें. उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें.
इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा स्कंदमाता सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें. इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दूर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें.