वाराणसीः धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में पर्व को एक उत्साह के रूप में मनाया जाता है हर साल जेष्ठ मास की अमावस्या को बट सावित्री व्रत रखा जाता है इस दिन सुहागिनी पति की लंबी आयु और सुख वैवाहिक जीवन की कामना के साथ व्रत रखती हैं. इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है बरगद के वृक्ष को बट बीच भी कहा जाता है साथ ही सत्यवान और सावित्री की कथा पढ़ी जाती है इसलिए इस दिन को बट अमावस्या वट अमावस्या सावित्री व्रत के नाम से जाना जाता है. वट सावित्री व्रत के दिन बरगद की पूजा की जाती है साथ ही बरगद की परिक्रमा करके 7 बार सूत का धागा लपेटा जाता है और ब्रिज के नीचे सत्यवान सावित्री की कथा पढ़ी जाती है इसका कारण है कि हिंदू धर्म में वटवृक्ष को पीपल की तरह ही पूजनीय माना गया है.
इस वृक्ष की आयु बहुत लंबी होती है, कहा जाता है ऐसे में सुहागिन महिलाएं इस बृज की पूजा करके और ब्रिज के नीचे सत्यवान और सावित्री की कथा पढ़कर यह प्रार्थना करती है कि बरगद के पेड़ की तरह उनके पति को भी दीर्घायु मिले और जिस तरह से सावित्री ने अपने पति और उसके परिवार के सभी संकटों को चतुराई से दूर कर दिया था उसी तरह हम सभी के परिवार से भी संकट दूर हो बरगद में 7 बार सूत लपेटकर हर महिला यह प्रार्थना करती हैं कि उनका पति के साथ सात जन्मो तक संबंध रहे और जीवन सुख और समृद्धि से बीते.
रिपोर्ट- अनंत कुमार