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वाराणसीः काशी नरेश राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय ज्ञानपुर के मुख्य सभागार में संस्कृत के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् स्व.पद्मश्री डॉ.कपिल देव द्विवेदी की जयन्ती के उपलक्ष्य में विद्वत्-सम्मान समारोह और " पद्मश्री डॉ. कपिल देव द्विवेदी का संस्कृत साहित्य को अवदान" विषय पर विद्वत्-संगोष्ठी का आयोजन किया गया. विश्वभारती अनुसंधान परिषद्, ज्ञानपुर, भदोही और संस्कृत विभाग, काशी नरेश राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय ज्ञानपुर के संयुक्त तत्त्वावधान में  आयोजित कार्यक्रम का शुभारम्भ अतिथियों द्वारा सरस्वती की प्रतिमा तथा स्व. डॉ. कपिलदेव द्विवेदी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप-प्रज्ज्वलन के साथ किया गया.

 पीयूष पाण्डेय,बी. ए. प्रथम सेमेस्टर द्वारा सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की गयी. प्रो. प्रभुनाथ द्विवेदी द्वारा डॉ. कपिलदेव द्विवेदी की स्मृति में विरचित कपिलाष्टक का वाचन छात्र विजय पाण्डेय द्वारा किया गया. संस्कृत विभाग के छात्रों द्वारा प्रस्तुत स्वागत गीत के अनन्तर डॉ. भारतेन्दु द्विवेदी , निदेशक , विश्वभारती अनुसंधान परिषद्, ज्ञानपुर, नें अतिथियों का वाचिक स्वागत किया. इसके अनन्तर समारोह के मुख्य अतिथि विजय शंकर शुक्ल,  क्षेत्रीय निदेशक, इन्दिरा गाँधी कला केन्द्र, वाराणसी और सारस्वत अतिथि प्रो.जय प्रकाश नारायण त्रिपाठी, पूर्व अध्यक्ष, वेदान्त एवं दर्शनशास्त्र, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी को सम्मानपत्र देकर सम्मानित किया गया.

 विद्वान् अतिथियों के सम्मान के अनन्तर वक्ताओं नें " पद्मश्री कपिलदेव द्विवेदी का संस्कृत साहित्य को अवदान" विषय पर अपनें विचार व्यक्त किए. संगोष्ठी के सारस्वत अतिथि प्रो. जय प्रकाश नारायण त्रिपाठी नें कहा कि वेद ही ऐसी निधि है जिसके आधार पर हम विश्वगुरु होनें की घोषणा करते हैं. ऐसे वेदों का पारायण डॉ. कपिलदेव द्विवेदी नें किया और लोक-भाषा हिन्दी के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाया. डॉ. त्रिपाठी नें कहा कि वेदों पर लेखनी उठाना सहज नहीं है. डॉ. द्विवेदी नें ऐसे गूढ़ विषय को अपनें लेखन का विषय बनाया. इनके लेखन कार्य से प्रभावित होकर ही भारत सरकार नें पद्मश्री  अलंकरण से अलंकृत किया.

 मुख्य अतिथि प्रो. विजय शंकर शुक्ल ने उक्त विषय पर अपनें विचार व्यक्त करते हुए कहा कि डॉ. द्विवेदी विद्या अनुरागी थे. उन्होनें जिन कृतियों का प्रणयन किया वें अद्भुत ज्ञानराशि से युक्त हैं. उनके द्वारा संकलित वैदिक सूक्तियाँ ही आपके ज्ञानपरिदृश्य को बदलनें में सक्षम है. प्रो. विद्याशंकर त्रिपाठी नें स्वरचित श्लोकों के माध्यम से डॉ. द्विवेदी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला. डॉ. त्रिपाठी नें कहा कि डॉ. द्विवेदी आजीवन संस्कृत और उसमें निबद्ध शास्त्रों के प्रचार- प्रसार में संलग्न रहे.

 अपनें अध्यक्षीय संबोधन में प्रभारी प्राचार्य प्रो. घनश्याम मिश्र नें कहा कि डॉ द्विवेदी जी अभिनव पाणिनि कहे जाते हैं. संस्कृत भाषा के प्रचार में उनका अतुलनीय योगदान है. राजकुमार पाठक , डॉ. कृष्णावतार त्रिपाठी, डॉ. राम नरेश शर्मा और डॉ. कमाल अहमद सिद्दीकी नें भी उक्त विषय पर अपनें विचार व्यक्त किए. वक्ताओं के संबोधन के पश्चात्  भूगोल विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर नमनकृष्ण की पुस्तक  "पर्यावरणीय मुद्दे एवं चिन्तन" का विमोचन भी सम्मानित मंच द्वारा संपन्न हुआ. डॉ. नमनकृष्ण नें कहा कि इस पुस्तक में विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दे वर्णित हैं और इसमें पर्यावरण के दार्शनिक पहलुओं का भी समावेश किया गया है.

 कार्यक्रम के अन्त में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. विष्णु कान्त त्रिपाठी द्वारा किया गया. संचालन डॉ. ऋचा नें किया. इस अवसर पर डॉ. विनय मिश्र, संजय कुमार, प्रो. कामिनी वर्मा, डॉ. रश्मि सिंह,आनन्द कुमार, नीरज गोस्वामी, डॉ. सूर्यनाथ खरवार और सिंह अरुण कुमार लक्ष्मण आदि प्राध्यापक-प्राध्यापिकायें, विश्वभारती अनुसंधान परिषद् के पदाधिकारी गण , संस्कृत सेवी तथा भारी संख्या में महाविद्यालय की छात्र-छात्रायें उपस्थित थीं.

रिपोर्ट- जलिल अहमद

 

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