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अयोध्या: सिविल लाइन स्थित प्रेस क्लब में एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए समाजसेवी राजेश सिंह मानव ने कहा मनसे प्रमुख राज ठाकरे का राम लला दर्शन राजनीति से प्रेरित प्रतीत  होता है, राजनैतिक महत्त्वाकांक्षा छोड़ना राजनेताओं के लिए दुस्तर हैं. नहीं तो असली नकली का प्रश्न ही नहीं था. पद प्रतिष्ठा वैभव को त्याग कर ही संत, देव दर्शन का तरीका (विधान) मार्ग सही है. 

 

उन्होंने कहा निर्मल मन जन  सो मोहि भावा, मोहि कपट छल छिद्र भावा" राम लला के दर्शन निमित्त आने में होडिंग लगा हल्ला मचाने की क्या जरूरत थी. मनुष्य अपने स्वभाव मुश्किल से छोड़ पाता है.  कौन आ रहा है वह कैसा है उंसके लक्षण  प्रकृति पहले ही प्रकट कर देती है. अगर कुछ गड़बड़ी न होती तो इस तरह की बात उठने का सवाल ही नहीं था. "सुनु खगेश नहीं कछु ऋषि दूषन, उर प्रेरक रघुवंस विभूषण" राम लला की इक्छा से ही विरोध के स्वर उठ रहें हैं. "करई  करावैय भंजय सोई, उमा मरम जानैय नहि कोई" ये  राजनीतिक लोग अपनी गणित से ही सब चलाना चाहते हैं. 

 

शक्तिशाली लोगो ने अनुकूलता का राग होना काफी हद तक स्वाभाविक होना हैं. बताते चले कि महाराष्ट्र में राजठाकरे ने जिस प्रकार से समाज के लिए अहित कारक बयानों के चलते देश के ही अन्य प्रांतों के लोगों के साथ दुर्व्यवहार हुआ वह अति गैर जिम्मेदाराना, अनुचित और निंदनीय है। इसकी घोर निंदा और विरोध होना स्वाभाविक है। जो स्वयं ठीक नहीं होते प्रकृति उन्हें ठीक कर देती है कुछ इसी प्रकार का प्रकरण राम लला  के पूर्वज अयोध्या नरेश सूर्यवंशी  महाराज सगर के सामने उनके अपने पुत्र असमंज को लेकर प्रस्तुत हुआ था जनमानस की बात सुनकर महाराज सगर ने प्रजाजन का प्रिय करने की इक्छा से अपने उस अहित कारक दुष्ट पुत्र का त्याग दिया और अपने नाती अंशुमान को उत्तराधिकारी बनाया अंशुमान से दिलीप, दिलीप से भगीरथ, भगीरथ से महाराज रघु हुये. 

 

जिन्होंने मनसे प्रमुख के स्वागत की बात कही है उनकी उदारता सराहनीय, प्रशसनीय है। पूर्ण से पाप नष्ठ नहीं होता पाप का नास  तो प्राश्चित रूपी पश्चाताप कर भगवत शरणागत हो नामजप से ही हो सकता है वैसे धर्म की गति बड़ी सूक्ष्म, गहन  है लोक में विज्ञ महात्मा भी उसे ठीक-ठीक नहीं जान सकते संसार मे बलवान मनुष्य जिसको धर्म समझता है धर्म विचार के समय उसी को धर्म मान लेते हैं और बलहीन जो धर्म बतलाता है. 

 

राजेश ने कहा कि बलवान पुरुष के बताये धर्म से दब जाता है. धर्म निर्णय कार्य अत्यंत गुरूत्तर होने से निष्चित रूप से यथार्थ विवेचन नहीं कर  सकता प्रातः स्मरणीय महात्मा भीष्म ने महाभारत के सभापर्व में कल्याणि द्रौपती के प्रश्नों के संदर्भ में कही  है। राजठाकरे के लिये यह अच्छा अवसर है बड़ा तबका उनके दोषों का भागी बनने को तैयार हैं।

 

 

रिपोर्ट सोनू चौधरी

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