रजमान-उल-मुबारक इस्लामिक कैलेंडर का नौवाँ महीना है। यह रहमतों वाला, बरकतों वाला महीना है, जिसमें अल्लाह शैतान को कैद कर देता है,जिससे वह लोगों की इबादत में खलल न डाले। रमजान-उल-मुबारक में हर नेकी का सवाब 70 गुना कर दिया जाता है। हर नवाफिल सवाब सुन्नतों के बराबर और हर सुन्नत का सवाब फर्ज के बराबर कर दिया जाता है। इस तरह सभी फर्ज का सवाब 70 गुना कर दिया जाता है। मतलब यह कि इस माहे मुबारक में अल्लाह की रहमत खुलकर अपने बन्दों पर बरसती है।
शहाबगंज क्षेत्र के सिहोरिया(सुबंथा) स्थित मदरसा खलीलिया साबीरिया गौसुल उलूम के सदर मुदर्रिश अली अकबर ने कहा महीना रमजान शुरू होने वाला है। इस माह का मुस्लिम
बंधु बेसब्री से पूरे साल इंतजार करते हैं। इस पाक और
मुकद्दस महीने में मुस्लिम बंधु रोजा रखते हैं नमाजे पढ़ने
हैं और गरीबों व जरूरतमंदों के बीच जकात दान करते हैं। और पूरे माह के रोजे के बाद ईद की नमाज अदा कर एक-दूसरे से खुशियां साझा करते हैं।
आगे उन्होने बताया कि माह ए रमजान को कुल तीन हिस्सों में बांटा गया है। रमजान के पहले अशरे में मुसलमानों को ज्यादा से ज्यादा दान करके गरीबों की मदद करनी चाहिए। हर एक इंसान से प्यार और नरमी का व्यवहार करना चाहिए। यूं तो रमजान का पूरा महीना मोमिनों के लिए खुदा की तरफ से अजमत, रहमत और बरकतों से लबरेज है। लेकिन अल्लाह ने इस मुबारक महीने को तीन अशरों में तक्सीम किया है।
पहला अशरा खुदा की रहमत वाला है। पहले अशरे में 10 दिनों तक अल्लाह की रहमत से सभी सराबोर होते रहेंगे। एक से 10 रमजान यानी पहले अशरे में खुदा की रहमत नाजिल होती है। रमजान का पहला अशरा बेशुमार रहमत वाला है। नेक काम के सवाब में 70 गुना इजाफा कर दिया जाता है। रमजान का महीना रहमत व बरकत वाला है। हर मर्द, बच्चे, औरत और बूढ़े रोजे का साथ नमाज तरावीह में मशगूल रहते हैं। 11वें रोजे से 20वें रोजे तक दूसरा अशरा चलता है। यह अशरा माफी का होता है। इस अशरे में लोग इबादत कर के अपने गुनाहों से माफी पा सकते हैं। इस्लामिक मान्यता के मुताबिक अगर कोई इंसान रमजान के दूसरे अशरे में अपने गुनाहों से माफी मांगता है तो दूसरे दिनों के मुकाबले इस समय अल्लाह अपने बंदों को जल्दी माफ करता है। रमजान का तीसरा और आखिरी अशरा 21वें रोजे से शुरू होकर चांद के हिसाब से 29वें या 30वें रोजे तक चलता है। ये अशरा सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। तीसरे अशरे का उद्देश्य जहन्नम की आग से खुद को सुरक्षित रखना है। इस दौरान हर मुसलमान को जहन्नम से बचने के लिए अल्लाह से दुआ करनी चाहिए। रमजान के आखिरी अशरे में कई मुस्लिम एतकाफ बैठते हैं। एतकाफ में मुस्लिम मस्जिद में 10 दिनों तक एक जगह बैठकर अल्लाह की इबादत करते हैं।
रमजान के पहले अशरे में अल्लाह की रहमत के लिए ज्यादा से ज्यादा इबादत की जानी चाहिए।
इसी तरह रमजान के दूसरे अशरे में अल्लाह से अपने गुनाहों की रो-रोकर माफी माँगनी चाहिए। रमजान की तीसरा अशरा जहन्नम की आग से अल्लाह की पनाह माँगने का है।रमजान के महीने में इशा की नमाज के बाद मस्जिदों में 'तरावीह' होती है, जिसमें बीस रकात नमाज में इमाम साहब कुरान मजीद की तिलावत करते हैं।