Shaurya News India
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चंदौली। चकिया तहसील के सबसे बड़ा ग्राम सभा सिकंदरपुर में सैकड़ों वर्षों पूर्व प्राचीन काल से राजा महाराजाओ  के समय से ऐतिहासिक पुरानी रीति रिवाज  के अनुसार पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरागत तिलस्म रूपी  तांत्रिक रहस्यमय तिनसल्ला सावनी बड़का पूजा हर तीन साल बाद चौथे साल सावन के महीने में कृष्ण पक्ष में बृहस्पति वार के दिन से सिकंदरपुर में किला पर स्थित कोट मां भगवती देवी मंदिर से  पूजा आरंभ गांव के दर्शनीया व गौदार(डुगडुगी बजाने वाली) एवम गांव की मेदनी हर घर  घर से एक एक महिलाए व पुरुष हर महाल के हिंदू समाज के लोग शामिल होकर पूजा पाठ उन्नीसवे दिन समाप्त होता है

 कोट मां भगवती देवी मंदिर के पुजारी/प्रबंधक विनय पाठक के जानकारी के अनुसार ऐसा  ऐतिहासिक  तिलस्म रूपी छुपी रहस्यमय तांत्रिक सावनी  तिनसल्ला पूजा उत्तरप्रदेश सहित आस पास के कई प्रदेशों में भी आज तक नही सुना गया न ही देखने को मिला है।

पूजा का शुरुआत पहला दिन बृहस्पतिवार को कोट मां भगवती देवी जी का सुबह में पूजा गांव के दर्शनीया सुलवन्ती देवी व गौदार(डुगडुगी बजाने वाली) साथ में करके गांव के डीह बाबा का पूजा करते हुए दर्शनिया व गौदार एवम गांव की सभी मेदनी(महिलाए) एकत्रित होकर लगभग सात (7) किलोमीटर दूर पैदल नंगे पांव से चलकर  भटवारा खुर्द कन्या पूर्व माध्यमिक विद्यालय के पास पोखरे घाट पर जाकर सभी लोग फिर  पुनः स्नान करके फत्तेपुर स्थित कोट पर विराजमान बीबी फातिमा देवी के नाम से उसी पोखरे के घाट पर से ही सभी मेदनी सत्तू (सतुआ) का भोग लगाकर धूप,दीप माला फूल धार चढ़ाकर वहा से चल कर  दुलहिया दाई पहाड़ के पास स्थित मंदिर दुलहिया माई के सेंधुर लगाकर धूप, दीप माला फूल नैवेद्य से पूजा अर्चना करने के उपरांत सत्तू का पानी पीकर वहा से हाजीपुर, भीषमपुर के रास्ते होते हुए  पहाड़ के ऊपर गुफा में स्थित शीतल दास बाबा का पूजा करके वहा से बनदेवी मौजा मैं मां वनदेवी जी का पूजा अर्चना करके वहां से सिकंदरपुर स्थित स्थल पर हनुमान मंदिर में  लड्डू का भोग लगाते हुए सिकंदरपुर बाजार चौक में  दर्शनीया व मेदनी द्वारा शाम के समय मां काली जी के जयकारा लगाया जाता है।दोनो तरफ जाने आने की पैदल  लगभग पंद्रह (15)किलोमीटर दूरी का भ्रमण होता है।

दूसरे दिन शाम के समय गांव के शैलेश पांडे के कुआ के पास खेत मे दर्शनीया व सभी मेदनी जुटकर उसमे से तीन मेदनी नग्न होकर हल जुआ चलाकर खेत को जोतने का रस्म किया जाता है और शैलेश पांडे के द्वारा वहा पर पहले से उस स्थान पे हल जुआ रखे रहते है और वाद में रस घुघरी देने का भी रस्म को अपने पूर्वजों की परंपरा की भाती आज भी पूरा करते हैं ।

रविवार को दही, घुघरी  गांव के दर्शनीया व सभी मेदनी द्वारा रोजाबारी में चढ़ाया जाता है।

मंगलवार को मल्लाह बस्ती इमामबाड़ा के पूरब तरफ शिव पुरान लाल श्रीवास्तव के खेत में दही घुघरी व कलकत्ते की काली मां को भेड़ा का बली चढ़ाने का रस्म किया जाता है।

होलिका गाड़ने का रस्म भी बृहस्पतिवार के दिन मौर्या  बस्ती के उत्तर तरह किया जाता है। होलिका बढ़ाने का रस्म शुकवार को किया जाता है। होलिका को चंद्रप्रभा नदी में बहाने का रस्म शनिवार को किया जाता है। रंगभरी (फगुआ) खेलने का रस्म रविवार किया जाता है। इसी दिन स्थल पर  मां काली जी के मंदिर में रोटी(पूड़ी,हलुआ) चढ़ाने का रस्म किया जाता हैं।

सिकंदरपुर गांव के हर मुहल्ले बस्ती में  शाम के समय सावनी पूजा एक एक दिन लोग  अपने अपने महाल का पुरानी रीति रिवाज करते  चले आ रहे हैं।

 सिकंदरपुर बाजार चौक में अठरहवे दिन शाम के समय गांव के दर्शनीया व मेदनी एवम हर घर परिवार से  एक एक आदमी सदस्य जुटकर पूजा में सामिल होते है। और जिसको घर जाना होता है तो वो लोग चौक में पूजा समाप्त होते ही ओ लोग घर जा सकते है। जो लोग आगे पूजा में बढ़ते है साथ में ओ लोग रात भर पूजा में समलित रहते है जब सुबह निकाली गांव के दक्षिण तरफ हो जाने पर ही लोग घर आ सकते है।


मां काली जी का हवन पूजा करके वहा मौजूद सभी लोगो का दर्शनीया धार गिराते हुए आगे बढ़ते स्थल हनुमान मंदिर के पास काली जी के मंदिर में हवन पूजा करते हुए कोर्ट मां भगवती देवी मंदिर प्रांगण में हवन पूजा व बकरा का  कान काटकर  छोड़ने की प्रथा का रस्म करते  हुए बुढ़वू शहीद बाबा के मजार पर एक मुर्गा  छोड़ते हुए मीठा का फातिहा कराते  हुए कौशल वीर  बाबा के स्थान पे हवन पूजा करके छ्वना का बली चढ़ाते हुए रोजाबरी में गाजी मिया बाबा के स्थान पर मीठा का फटीहा करते हुए गांव के डीह बाबा (नगर के राजा) के स्थान पे हवन पूजा व शुअरा का बली चढ़ाते हुए गांव के  बाहर दक्षिणी ओर पडूहार मौजा में उन्नइसवे दिन सुबह के समय पूजा में झंडा व धार घड़ा में रखकर भेड़ा,पड़वा,छवना (शुअर का बच्चा)का कान काट कर छोड़ते हुए  पूरे गांव की रक्षा हेतु  निकाली करते हुए स्थल पर क्रबिस्तान के बगल में दुर्गासप्तसी पाठ से हवन पूजा करके गांव में तब नागपंचमी का पूजा हर घर में किया जाता है.

रिपोर्ट- पंडित विनय पाठक 

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