काशी। रविवार को अखिल भारतीय घोष दिवस के अवसर पर काशी महानगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के घोष विभाग द्वारा नमो घाट पर स्वयंसेवकों द्वारा घोष वादन हुआ।
स्वयंसेवकों ने घोष वादन करते हुए बंशी पर तिलंग भूप और शिवरंजनी रचना प्रस्तुत की। शंख पर श्रीराम किरण और सोनभद्र रचना प्रस्तुत की गई। कार्यक्रम के प्रारंभ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भगवा ध्वज लगाया गया। उसके बाद 50 स्वयंसेवकों ने विभिन्न रचनाएं प्रस्तुत की।
इस अवसर पर काशी प्रांत के शारीरिक शिक्षण प्रमुख संतोष जी ने कहा कि संघ की स्थापना के समय ही डॉक्टर साहब का मन अपने अलग घोष दल की स्थापना करने हेतु था। ऐसे में गोविंद राव देशमुख जी ने डॉक्टर साहब का भरपूर सहयोग किया। मार्कंडेय राव और हरी विनायक दातेय जी का नाम संघ के प्रारंभिक घोष वादकों में आता है। 1982 के एशियाड में भारतीय नौसेना ने संघ द्वारा तैयार शिवराजः की धुन बजाई थी।
उन्होंने कहा कि संगच्छध्वं संवदध्वं के मंत्र की सार्थकता घोष द्वारा तब सिद्ध होती है जब सामान्य स्वयंसेवक घोष की धुन पर कदमताल करते हुए आगे बढ़ता है।
उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय संघ सेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष में अयोध्या में 10000 स्वयंसेवकों के साथ घोष वादन करेगा।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से काशी उत्तर भाग के मा. संचालक हेमंत गुप्ता जी, सुरेंद्र जी, प्रभात आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन जितेंद्र जी एवं धन्यवाद ज्ञापन विपिन जी द्वारा किया गया।
*वार्षिकोत्सव : राष्ट्र, समाज, धर्म तथा संस्कृति की सेवा करने वाला स्वयंसेवक होता है - डा.राकेश*
*काशी।* लंका के माधव मार्केट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ माधव शाखा पर शाखा का वार्षिकोत्सव आयोजित किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता काशी प्रांत के सह प्रांत कार्यवाह डा.राकेश तिवारी ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तीन शब्दों का समुच्चय है। राष्ट्रीय का अर्थ है जिसकी अपने देश, उसकी परम्पराओं, उसके महापुरुषों, उसकी सुरक्षा एवं समृद्धि के प्रति अव्यभिचारी एवं एकान्तिक निष्ठा हो, जो देश के साथ पूर्ण रूप से भावात्मक मूल्यों से जुड़ा हो अर्थात् जिसको सुख-दुःख, हार-जीत व शत्रु-मित्र की समान अनुभूति हो वह राष्ट्रीय कहलाता है।
स्वयंसेवक स्वयं प्रेरणा से राष्ट्र, समाज, धर्म तथा संस्कृति की सेवा करने वाले व उसकी रक्षा कर उसकी अभिवृद्धि के लिये प्रमाणिकता तथा निःस्वार्थ बुद्धि से कार्य करने वाले को स्वयंसेवक कहते हैं। जबकि संघ का शाब्दिक अर्थ संगठन या समुदाय होता है। समान विचार वाले, समान लक्ष्य को समर्पित, परस्पर आत्मीय भाव वाले व्यक्तियों के निकट आने से संगठन बनता है। ये सभी एक ही पद्धति, रीति व पूर्ण समर्पण भाव से कार्य करते हैं।
An Organization is a group of workers Who think aloud wedded together to a common ideal and goal.
उन्होंने आगे सम्बोधित करते हुए कहा कि संघ का कार्य ईश्वरीय कार्य है| प्रार्थना के प्रथम श्लोक में हम मातृ वंदना करते है, द्वितीय श्लोक में हम प्रभु का स्मरण करते हैं| प्रार्थना की छठीं पंक्ति में हम नित्य प्रति कहते है कि त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयम| यह जो त्वदीयाय कार्याय हम कहते हैं इसका अर्थ है "हे प्रभु ! यह कार्य हम जिसको कर रहे हैं वह आपका ही कार्य है, अर्थात हम ईश्वरीय कार्य करने का संकल्प लेते है| प्रार्थना में हम संकल्प करते है कि "विधायास्य धर्मस्य संरक्षणं " अर्थात धर्म का संरक्षण करते हुए ही हमको सभी कार्य करने हैं| उन्होंने ईश्वरीय कार्य के बारे में बताते हुए कहा कि अधिवक्ता, कृषक, श्रमिक, सूर्य व चन्द्र आदि के कार्य तो स्पष्ट हैं परन्तु ईश्वरीय कार्यों की स्पष्टता नहीं है| ईश्वरीय कार्य के बारे में भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में स्पष्ट बताया है कि परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।*
*धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।
मुख्य अतिथि सेवा भारती काशी प्रांत के अध्यक्ष राहुल सिंह ने कहा कि स्वयंसेवक माटी को चंदन मानता है। राष्ट्र उन्नति हेतु स्वयंसेवक सदैव तत्पर रहता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता रामनगर औद्योगिक एसोसिएशन के अध्यक्ष देव भट्टाचार्य ने की। संचालन शाखा कार्यवाह अजीत जी ने किया।