Shaurya News India
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 लोकतंत्र में राजनीतिक विचारधाराओं के मध्य सामंजस्य होना अथवा नहीं होना एक सामान्य प्रक्रिया है। जो लोग लोकतंत्र और संविधान में विश्वास रखते हैं, वे भली-भाँति परिचित हैं कि देश के प्रत्येक नागरिक का एक ही उद्देश्य है - ‘देश की प्रगति‘। यद्यपि इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सबका मार्ग पृथक-पृथक हो सकता है परन्तु मूल उद्देश्य सबका एक ही होता है।


    अमित शाह जी उच्च कोटि के राजनीतिज्ञ हैं, जिनका एक दीर्घकालीन  राजनीतिक जीवन रहा है और इस दौरान उन्होंने राज्य व केन्द्र स्तर के विभिन्न पदों को प्राप्त कर देश की सेवा की है। आज वे भारत के गौरवमयी गृहमंत्री हैं और अत्यधिक निष्ठा एवं ईमानदारी से अपने कार्यो का निर्वहन कर रहें हैं।


    राजनीति में अनेकों बार हमारे मुख से ऐसे शब्द प्रवाहित हो जाते हैं, जो हमारी प्रकृति के अनुरूप नहीं होते अथवा जिनका उच्चारण करना हमें स्वयं प्रिय नहीं होता, इसके विपरीत कई बार ऐसा भी होता है कि जिन भावों को हम प्रकट करना चाहते हैं, उसके अनुरूप शब्द मुख से निकाल ही नहीं पाते।

संसद में अमित शाह जी के मुख से राष्ट्रभक्त, ईश्वर प्रेमी, लोकतंत्र के प्रेणता, ईश्वर स्वरूपा डाक्टर भीमराव अम्बेडकर जी के लिए जो भाव निकले, सम्भवतया वे कभी भी हृदय से ऐसा करना नहीं चाहते होंगे, परन्तु जैसे कहा जाता है कि मुख से एक बार जो शब्द निकल जाते हैं वो दूसरों की संपत्ति हो जाते हैं। ऐसा ही अमित शाह जी के साथ हुआ कि उन्होंने अम्बेडकर जी के प्रति जो नकारात्मक भाव प्रदर्शित किया, उससे अम्बेडकर जी के प्रति सम्मान रखने वाली जनता के हृदय में नकारात्मक भाव का सृजन हो गया।


    जिस भाव का सृजन पूरे देश में हो रहा है, सम्भवतया वो भाव अमित शाह जी के हृदय में कभी नहीं रहा होगा। चुंकि जनता सदैव ही नकारात्मक भाव की धारणा से शीघ्र ही प्रभावित हो जाती है, इसी कारण उनके प्रति घृणा का वातावरण स्थापित होने में समय नहीं लगा।

इसी के अन्तर्गत लोगों ने अमित शाह जी के ब्यान के पश्चात उनके पुतले फूंके, उनके फोटो पर कहीं जूतो की माला पहनायी तो कहीं चप्पलों से पिटाई की, कई जगह पर कुछ लोगो ने उनके फोटो पर लघु शंका जैसा अपमानजनक व्यवहार किया और उसकी विडियों बनाकर सोशल मीडिया पर प्रसारित की। ऐसे कृत्यों को भारतीय समाज व लोकतंत्र में उचित नहीं कहा जा सकता।


    ऐसे दृश्य तब देखने को मिले थे जब देश स्वतंत्र हो रहा था और जनता का उबाल अंग्रेजों के विरूद्ध चरम पर पहुँच चुका था। परन्तु आज देश स्वतंत्र है और अमित जी देश के सम्मानित नागरिक और सफलत्तम गृहमंत्री हैं। उनके साथ यह व्यवहार, हृदय को ठेस लगाने वाला एवं अचम्भित करने वाला है, जिस पर अविलम्ब अंकुश लगाना चाहिए। लोकतंत्र में विरोध वोटो से होता है, वह जनता की शक्ति है। यदि किसी भी राजनीतिज्ञ के द्वारा किया गया कोई भी कार्य जनता को स्वीकार नहीं है

तो वे वोट की शक्ति से उस व्यक्ति को अपदस्थ कर सकती है, यही उसके लिए जनता का बहुत बड़ा निर्णय होगा।  


    भारत एक उच्च कोटी के ज्योतिषों की कर्मभूमि है। यहाँ की 80 प्रतिशत से भी अधिक जनसंख्या ज्योतिष के ज्ञाताओं को महत्व देती है। ज्योतिषों को मानना है कि अमित शाह जी की जन्मपत्री के अनुसार, उनकी ग्रहचाल उनके अनुरूप नहीं चल रही है। गृहों की विपरीत चाल के कारण ही, श्रीराम को वनवास गमन करना पड़ा था,

भगवान शिव को हाथी का वेश धारण करना पड़ा था, राजा हरिश्चन्द्र को राजपाट छोड़कर डोम का कार्य करना पड़ा था। अर्थात् जब ग्रहचाल उचित न चल रही हो तो ऋषी मुनियों के अनुसार मनुष्य को शांत रहने की आवश्यकता होती है।

भारत की जनता चाहती हैं कि अमित शाह जी स्वस्थ रहें और भविष्य में भी वे देश सेवा करते रहें। इसके लिए अभी उन्हें 2/3 वर्ष तक सक्रिय राजनीति से अवकाश ग्रहण कर, वर्तमान नकारात्मक समय को शांति से व्यतीत करे। तत्पश्चात सक्रिय राजनीति में पुनः आकर देश सेवा करें। 

योगेश मोहन
( वरिष्ठ पत्रकार और आईआईएमटी यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति )

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