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बछ बारस भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है। इस वर्ष सोमवार 30 अगस्त को मनाई जाएगी।
 

 

बछ यानि बछड़ा गाय के छोटे बच्चे को कहते है । इस दिन को मनाने का उद्देश्य गाय व बछड़े का महत्त्व समझाना है। यह दिन गोवत्स द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। गोवत्स का मतलब भी गाय का बच्चा ही होता है।

 

बछ बारस का यह दिन कृष्ण जन्माष्टमी के चार दिन बाद आता है । कृष्ण भगवान को गाय व बछड़ा बहुत प्रिय थे तथा गाय में सैकड़ो देवताओं का वास माना जाता है। गाय व बछड़े की पूजा करने से कृष्ण भगवान का , गाय में निवास करने वाले देवताओं का और गाय का आशीर्वाद मिलता है जिससे परिवार में खुशहाली बनी रहती है ऐसा माना जाता है।

 

बछ बारस 
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इस दिन महिलायें बछ बारस का व्रत रखती है। यह व्रत सुहागन महिलाएं सुपुत्र प्राप्ति और पुत्र की मंगल कामना के लिए व परिवार की खुशहाली के लिए करती है। गाय और बछड़े का पूजन किया जाता है। इस दिन गाय का दूध और दूध से बने पदार्थ जैसे दही , मक्खन , घी आदि का उपयोग नहीं किया जाता। इसके अलावा गेहूँ और चावल तथा इनसे बने सामान नहीं खाये जाते ।

 

भोजन में चाकू से कटी हुई किसी भी चीज का सेवन नहीं करते है। इस दिन अंकुरित अनाज जैसे चना , मोठ , मूंग , मटर आदि का उपयोग किया जाता है।

 

भोजन में बेसन से बने आहार जैसे कढ़ी , पकोड़ी , भजिये आदि तथा मक्के , बाजरे ,ज्वार आदि की रोटी तथा बेसन से बनी मिठाई का उपयोग किया जाता है।बछ बारस के व्रत का उद्यापन करते समय इसी प्रकार का भोजन बनाना चाहिए। उजरने में यानि उद्यापन में बारह स्त्रियां , दो चाँद सूरज की और एक साठिया इन सबको यही भोजन कराया जाता है। 

 

शास्त्रो के अनुसार इस दिन गाय की सेवा करने से , उसे हरा चारा खिलाने से परिवार में महालक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा परिवार में अकालमृत्यु की सम्भावना समाप्त होती है। 

 

बछ बारस की पूजा विधि
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सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर शुद्ध कपड़े पहने। दूध देने वाली गाय और उसके बछड़े को साफ पानी से नहलाकर शुद्ध करें।

 

गाय और बछड़े को नए वस्त्र ओढ़ाएँ।
फूल माला पहनाएँ। उनके सींगों को सजाएँ। उन्हें तिलक करें गाय और बछड़े को भीगे हुए अंकुरित चने , अंकुरित मूंग , मटर , चने के बिरवे , जौ की रोटी आदि खिलाएँ। गौ माता के पैरों धूल से खुद के तिलक लगाएँ। इसके बाद बछ बारस की कहानी सुने। 

 

इस प्रकार गाय और बछड़े की पूजा करने के बाद महिलायें अपने पुत्र के तिलक लगाकर उसे नारियल देकर उसकी लंबी उम्र और सकुशलता की कामना करें। उसे आशीर्वाद दें। बड़े बुजुर्ग के पाँव छूकर उनसे आशीर्वाद लें। अपनी श्रद्धा और रिवाज के अनुसार व्रत या उपवास रखें।

 

मोठ या बाजरा दान करें। सासुजी को बयाना देकर आशीर्वाद लें।

 

यदि आपके घर में खुद की गाय नहीं हो तो दूसरे के यहाँ भी गाय बछड़े की पूजा की जा सकती है। ये भी संभव नहीं हो तो गीली मिट्टी से गाय और बछड़े की आकृति बना कर उनकी पूजा कर सकते है।

 

कुछ लोग सुबह आटे से गाय और बछड़े की आकृति बनाकर पूजा करते है। शाम को गाय चारा खाकर वापस आती है तब उसका पूजन धुप, दीप , चन्दन , नैवेद्य आदि से करते है।

 

पूजन मंत्र
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ॐ सर्वदेवमये देवि लोकानां शुभनन्दिनि।मातर्ममाभिषितं सफलं कुरु नन्दिनि।। 
ॐ माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि:
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट नमो नम: स्वाहा।

 

बछबारस की कथा कहानी व्रत पूजा विधि 
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बछबारस का त्यौहार भाद्रपद (भादों) द्वादशी को मनाया जाता हैं. इस दिन व्रत रखने वाले स्त्री पुरुषों को गाय के बछड़े की पूजा करनी चाहिए. अगर किसी के यहाँ गाय का बछड़ा ना हो तो किसी दूसरे की गाय के बछड़े की पूजा की जाती हैं. किसी भी सूरत में गाय का बछड़ा ना मिले तो बछबारस की पूजा के लिए मिट्टी का गाय का बछड़ा बनाकर भी पूजा की जाती हैं.

 

बछबारस व्रत पूजा विधि
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इस दिन की पूजा में उसके ऊपर दही, भीगा हुआ बाजरा, आटा, घी आदि चढ़ावे, फिर बछबारस की कहानी सुने. फिर मोठ, बाजरा पर एक रुपया रखकर वायना काढ़ सासुजी को दे दे।

 

इस दिन बाजरा की ठंडी रोटी खावे, फिर रोली या हल्दी से तिलक लगाना चाहिए. चावल दूध चढ़ावे. बछबारस के दिन गाय का दूध, दही, गेहूं, चावल नही खाना चाहिए. यह व्रत पुत्र प्राप्त करने के लिए किया जाता हैं।

 

अपने कुंवारे लड़के की कमीज पर सातियाँ बनाकर पहनावे और कुँए को पूजें. इससे बच्चें के जीवन की रक्षा होती हैं. भूत-प्रेत, नजर और रात के अचानक डर से बचत होती हैं।

 

जिस साल लड़के के विवाह या लड़का जन्म ले तो यह उजमन किया जाता हैं. इस दिन से एक दिन पहले एक सेर बाजरा दान में देवें. बछबारस के दिन एक थाली में 13 मोठ बाजरे की ठेरी बनाकर उस पर दो मुट्ठी बाजरे का आटा जिसमे चीनी मिली होवे रख देवे, एक तियल और रूप्या भी इस पर रखे।

 

इस सामान को हाथ फेरकर अपनी सासुजी के पाय लगकर दे. इसके बाद गाय के बछड़े और पानी के कुँए की पूजा करे. इसके बाद मंगल गीत गाएं और ब्राह्मणों को दान देना चाहिए

बछबारस की कथा कहानी
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एक बार एक राजा थे, उसके सात बेटे तथा एक पौत्र था. एक दिन राजा को विचार आया कि एक कुआँ खुदवाया जाए. राजा ने अपनी मजदूरों को कुआँ खोदने का हुक्म दिया. कुछ ही दिन में कुआँ खुदकर तैयार हो गया, मगर उसमें छल्लू भर पानी भी नही निकला।

 

तभी राजा ने इस रहस्य का पता लगाने के लिए, विद्वान पंडितों को बुलाया, और उनसे पूछा- हे ब्राह्मण देव मैंने कुआँ खुदवाया मगर इसमें पानी नही निकला इसका क्या कारण हैं. पंडित ने राजा से कहा – महाराज अगर आप अपने नाती को बलि दे तथा यज्ञ करवाएं तो कुँए में पानी आ जाएगा।

 

राजा पंडित की बात मान गये, बच्चें को बलि देने की तैयारियां शुरू होने लगी. तभी बारिश होने लगी तथा पानी से कुआ भर गया. जब राजा को इस बात का पता चला तो वे पानी के उस कुँए को पूजने निकले. उस दिन राजा के घर में अचानक साग सब्जी समाप्त हो गया, नौकरानी ने गाय के बछड़े को काटकर बना दिया।

 

जब राजा रानी कुँए की पूजा करके वापिस महल को आए तो उन्होंने नौकरानी से पूछा, कि बछड़ा कहाँ हैं. तब नौकरानी ने कहा उसे तो मैंने काटकर साग बना दिया. राजा ने गुस्से में आकर कहा, अरे पापिन तूने यह क्या किया ? राजा ने उस मांस की हांडी को जमीन में गाढ़ दिया और कहने लगा- जब गाय वन से लौटकर आएगी तो मैं उसको किस प्रकार समझाउगा।

 

शाम को जब गाय वन से चरकर घर आई तो वहां पर बछड़े का मांस गड़ा हुआ था. उस जगह को अपने सींग से खोदने लगी. जब सिंग हाड़ी में जा लगा तो गाय ने उसे बाहर निकाला, उस हाड़ी से गाय का बछड़ा तथा राजा का नाती निकले. उसी दिन से इस दिन का नाम बछबारस पड़ गया और गायों तथा उनके बछड़ों की पूजा होने लगी।
 


 

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