लखनऊः 29 नवम्बर 1992 की सुबह भोजपाली बाबा के लिए जीवन का उद्देश्य बदलने की सुबह बनकर आई. बकौल भोजपाली बाबा(रविन्द्र गुप्ता) अनुसार उसवक्त पिताजी कामपर गए हुए थे. उन्होंने अपना बैग भरा और अयोध्या जाने के लिए माताजी के पैर छुए. जैसा यकीन था वैसा ही हुआ मां आधा किलोमीटर तक पीछे दौड़कर आई बहुत रोका लेकिन मैं नही माना माँ लौट गई. मैं झटपट भोपाल स्टेशन पहुंचा ट्रेन आधा घण्टा लेट थी तब बड़े भाई भी मुझे मनाने आ गए लेकिन मैंने कह दिया, जीवित लौटा तो ठीक अन्यथा मरा समझ लेना. राम काज बिनु मोहे कहां विश्राम. भैया ने जेब से 500रु(उसवक्त के 500रु) निकाले और भावुक होकर कहा, तू चिंता मत कर मां को मैं सम्भाल लूंगा(अयोध्या में दो साल पहले गोलियां चली थी सब चिंतित थे)
29 नवम्बर 1992 की सुबह याद कर भोजपाली बाबा भावुक हो उठते है , पेशे से वकील और अभी बैतूल के गांव मे मंदिर मे रहने वाले भोजपाली बाबा कहते है कि जब उन्होंने अयोध्या में प्रभु राम को टेंट में देखा तो उसी वक्त सौगंध खाई कि अब शादी तभी करेंगे जब भव्य राममंदिर निर्माण होगा. आज उन्हें रामलला के प्राणप्रतिष्ठा का निमंत्रण मिला और भावुक हो गए.
ये है राममंदिर अयोध्या की अनकही समर्पण गाथाएं ऐसी अनगिनत गाथाएं है राममंदिर कोई साधारण मंदिर नही है इसमें भाव श्रद्धा समर्पण विश्वास है कांग्रेस सहित विपक्ष ये क्यों नही समझ पा रहा कि राम इस देश की आत्मा है उनसे मुख मौड़कर किसी का कोई भला नही हो सकता.