
घटना हमें यह सिखाती है कि हर माध्यम में अच्छाई और बुराई दोनों हो सकती हैं। आज के सोशल मीडिया को अगर आधुनिक समुद्र मंथन कहा जाए, तो यह प्रश्न उठता है कि यह समाज को अमृत कलश दे रहा है या विष।
भारतीय अध्यात्म के महाकुंभ जैसे आयोजनों में जहां गहरी आध्यात्मिकता और सनातन संस्कृति का दर्शन होता है, वहां सोशल मीडिया के प्रभाव में यह अद्भुत विरासत भी कहीं न कहीं सतही आकर्षणों में खोती जा रही है।
सोशल मीडिया पर दिखावा, प्रसिद्धि और सनसनी का बोलबाला है, और ऐसी परिस्थितियों में सच्चे संतों और उनके तपस्या की गाथाओं पर ध्यान कम ही जाता है।
महाकुंभ के इस पावन अवसर पर हम आपको एक ऐसे संत की कहानी बताते हैं जिनकी सादगी और संकल्प अद्भुत हैं। यह कहानी है श्री अनंतानंद सरस्वती जी की।
चित्र में दिख रहे श्री अनंतानंद सरस्वती जी ने अपने सन्यास जीवन में अनोखा नियम अपनाया है। इन्होंने संकल्प लिया है कि वे किसी भी प्रकार के आधुनिक वाहन का उपयोग नहीं करेंगे और सदैव पैदल ही भ्रमण करेंगे।
साथ ही, अपने साथ केवल एक भिक्षा पात्र रखते हैं, जिसमें जो भी भोजन उन्हें प्राप्त होता है, उसी से संतुष्ट रहते हैं।
प्रयागराज महाकुंभ में शामिल होने के लिए श्री अनंतानंद सरस्वती जी ने उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम से प्रयागराज तक की लंबी यात्रा पैदल पूरी की। यह कोई सामान्य यात्रा नहीं थी; यह तप, संकल्प और आस्था का प्रतीक थी।
उनकी इस यात्रा का उद्देश्य केवल धार्मिक आयोजन में भाग लेना नहीं था, बल्कि समाज को यह संदेश देना था कि सादगी,
त्याग और आत्मनियंत्रण ही सच्चे अध्यात्म का मार्ग है। लेकिन, यह दुखद है कि ऐसे सच्चे संतों की कहानियां सोशल मीडिया पर कम ही दिखाई देती हैं।
आज सोशल मीडिया पर चर्चा का केंद्र अधिकतर बाहरी आकर्षण और सतही विषय बन चुके हैं। कई बार देखा गया है कि
लोगों की रुचि असली आध्यात्मिकता को समझने के बजाय, किसी युवा साध्वी या चकाचौंध भरे आयोजनों को देखने में अधिक होती है। इस कारण, ऐसे संतों की तपस्या और उनकी गहन साधना का महत्व धीरे-धीरे अनदेखा किया जा रहा है।
श्री अनंतानंद सरस्वती जैसे संत हमें यह सिखाते हैं कि जीवन में वास्तविक सुख और शांति बाहरी दिखावे में नहीं, बल्कि अंदरूनी साधना और सादगी में है। यह कहानी हमें प्रेरणा देती है कि हम सोशल मीडिया का उपयोग भी इस प्रकार करें कि वह समाज को अमृत प्रदान करे, न कि विष।
सोशल मीडिया को एक सशक्त माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, बशर्ते हम इसके द्वारा सच्ची और प्रेरणादायक कहानियां सामने लाएं।
अनंतानंद सरस्वती जैसे संतों के जीवन और उनके संदेशों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की आवश्यकता है। यह न केवल हमारे समाज को सही दिशा देगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी सच्चे मूल्य सिखाएगा।