मुक्तिप्रदाता काशीपुराधिपति श्री विश्वनाथ जी के दर्शन और पूजन में...
यदि कोई व्यक्ति अपने वरदान या पद का उपयोग स्वतंत्रता के नाम पर करे....
तो वह सदुपयोग करे या दुरुपयोग..
यह पूर्णतः उस व्यक्ति की अंत:प्रेरणा और विवेक पर निर्भर करता है।
शक्ति प्राप्त करना मात्र ही शक्तिशाली बन जाना नहीं होता...
शक्ति का सम्मान करना....
और उसे सही दिशा में वहन करने की क्षमता होना...
यही वास्तविक बल है।
यह क्षमता न किसी वरदान से प्राप्त होती है
न किसी पद से,यह तो विकसित होती है....
हमारे अन्त: के भक्ति-भाव से पूर्ण श्रद्धा और सनातन संस्कारों से।
यह शक्ति मिलती है...
सनातन शास्त्रों पर अडिग विश्वास...
और धर्मनिष्ठ चिंतन से।
किन्तु धर्म, संस्कार, शास्त्र चिन्तन से विहीन शक्ति सम्पन्नता...
देश, समाज, कुटुम्ब और स्वयं के पतन और विनाश का कारण होती है।
महादेव!महादेव! महादेव! अजय शर्मा