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इंसान आमतौर पर शरीर, मन और बहुत सारी भावनाओं से बना है। यही वजह है कि ज्यादातर लोग अपने शरीर, मन और भावनाओं को समर्पित किए बिना किसी चीज के प्रति खुद को समर्पित नहीं कर सकते।

 

विवाह का मतलब यही है कि आप एक इंसान के लिए अपनी हर चीज समर्पित कर दें, अपना शरीर, अपना मन और अपनी भावनाएं। आज भी कई इसाई संप्रदायों में नन बनने की दीक्षा पाने के लिए, लड़कियां पहले जीसस के साथ विवाह करती हैं।

 

कुछ लोगों के लिए यह समर्पण, शरीर, मन और भावनाओं के परे, एक ऐसे धरातल पर पहुंच गया, जो बिलकुल अलग था, जहां यह उनके लिए परम सत्य बन गया था। ऐसे लोगों में से एक मीराबाई थीं, जो कृष्ण को अपना पति मानती थीं।

 

कृष्ण को लेकर मीरा इतनी दीवानी थीं कि महज आठ साल की उम्र में मन ही मन उन्होंने कृष्ण से विवाह कर लिया। उनके भावों की तीव्रता इतनी गहन थी कि कृष्ण उनके लिए सच्चाई बन गए। यह मीरा के लिए कोई मतिभ्रम नहीं था, यह एक सच्चाई थी कि कृष्ण उनके साथ उठते-बैठते थे, घूमते थे।

 

ऐसे में मीरा के पति को उनके साथ दिक्कत होने लगी, क्योंकि उनके पति ने हर संभव कोशिश की, यह सब समझने की, क्योंकि वह मीरा को वाकई प्यार करता था। लेकिन वह नहीं जान सका कि आखिर मीरा के साथ हो क्या रहा है।

 

दरअसल, मीरा जिस स्थिति से गुजर रही थीं और उनके साथ जो भी हो रहा था, वह बहुत वास्तविक लगता था, लेकिन उनके पति को कुछ भी नजर नहीं आता था। वह इतना निराश हो गया कि एक दिन उसने खुद को नीले रंग से पोत लिया, कृष्ण की तरह के पोशाक पहन कर मीरा के पास आया। दुर्भाग्य से उसने गलत तरह के रंग का इस्तेमाल कर लिया, जिसकी वजह से उसे एलर्जी हो गई और शरीर पर चकत्ते निकल आए।

 

मीरा के इर्द गिर्द के लोग शुरुआत में बड़े चकराए कि आखिर मीरा का क्या करें। बाद में जब कृष्ण के प्रति मीरा का प्रेम अपनी चरम ऊंचाइयों तक पहुंच गया तब लोगों को यह समझ आया कि वे कोई असाधारण औरत हैं। लोग उनका आदर करने लगे। यह देख कर कि वे ऐसी चीजें कर सकती हैं, जो कोई और नहीं कर सकता, उनके आस-पास भीड़ इकट्ठी होने लगी।

 

जीव गोसांई वृंदावन में वैष्णव-संप्रदाय के मुखिया थे। मीरा जीव गोसांई के दर्शन करना चाहती थीं, लेकिन उन्होंने मीरा से मिलने से मना कर दिया। उन्होंने मीरा को संदेशा भिजवाया कि वह किसी औरत को अपने सामने आने की इजाजत नहीं देंगे।

 

मीराबाई ने इसके जवाब में अपना संदेश भिजवाया कि ‘वृंदावन में हर कोई औरत है। अगर यहां कोई पुरुष है तो केवल गिरिधर गोपाल। आज मुझे पता चला कि वृंदावन में कृष्ण के अलावा कोई और पुरुष भी है।’ इस जबाब से जीव गोसाईं बहुत शर्मिंदा हुए। वह फौरन मीरा से मिलने गए और उन्हें भरपूर सम्मान दिया।

 

मीरा ने गुरु के बारे में कहा है कि बिना गुरु धारण किए भक्ति नहीं होती। भक्तिपूर्ण इंसान ही प्रभु प्राप्ति का भेद बता सकता है। वही सच्चा गुरु है। स्वयं मीरा के पद से पता चलता है कि
उनके गुरु रैदास थे।

रिपोटे ठाकुर अनिकेत शर्मा 

 

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