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वाराणसी - बड़ागांव ग्राम निकले बाबू भूलन सिंह ने सहकारिता जगत से लेकर राजनीति व अखबार की दुनिया में जो मिसाल कायम की है वह आज भी 'मील का पत्थर' है। अपनी बेबाकी, ईमानदारी व अक्खड़ मिजाज के लिए बाबू भूलन सिंह जितने जाने व पहचाने जाते थे उससे कहीं अधिक उनकी कर्तव्यनिष्ठा लोगों को प्रभावित करती थी। सभी के दिलों पर राज करने वाले समय के पाबंद बाबू साहब ने सहकारिता से लेकर अखबार जगत में न केवल अपना प्रभाव छोड़ा बल्कि सैकड़ों लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर उनके जीवन को सुखमय बनाने जैसा महत्वूपर्ण कार्य किया।
साधारण वेशभूषा (धोती-कुर्ता) में जीवन व्यतित करने वाले बाबू साहब ने कभी किसी के आगे झुकना पसंद नहीं किया। हर क्षेत्र में कर्मयोद्धा बन उन्होंने अपना लोहा मनवाया। सहकारिता के क्षेत्र में उन्होंने जहां देश स्तर की राजनीति
चाजनीति पर बड़ी-बड़ी हस्तियां करती थी चर्चा बेबाकी व कर्तव्यनिष्ठा के सभी होते थे कायल
31वीं पुण्यतिथि
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर, नारायण दत्त तिवारी, स्व. कल्पनाथ राय से लगायत वर्तमान में रक्षामंत्री राजनाथ
की वहीं पूर्वांचल में उनकी इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था। उनकी अक्खड़ मिजाजी ने राजनीति में उन्हें अलग ही पहचान दी थी, इस कारण भी वे सभी के प्रिय थे। कांग्रेस की ओर झुकाव होने के कारण शीर्ष नेतृत्व भी उनका सम्मान करता था।
उन्होंने जो चाहा व कर दिखाया औरंगाबाद हाउस से लेकर दिल्ली तक के कई दिग्गज नेता बाबू साहब के साथ समसामयिक राजनीति पर चर्चा करना, उनके साथ समय व्यतीत करना खुद के लिए अपना समझते थे सिंह, प्रभुनारायण सिंह, राजनारायण, राजकुमार राय, रामधन समेत तमाम नेता उनके उनके साथ बैठकर राजनीति पर चर्चा तथा विचार विमर्श करते थे।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी बाबू भूलन सिंह ने पढ़ाई
लिखाई भले कम की थी लेकिन सोचने-समझने व समाज को जागरूक करने की उनके पास अद्भुत क्षमता व प्रतिभा थी। यहीं कारण था कि उन्होंने अखबार के क्षेत्र में भी एक मिसाल कायम किया। उनकी अदम्य इच्छा शक्ति का ही नतीजा रहा कि हिन्दी पत्रकारिता के उन्नयन में उनके योगदान को आज भी भुलाया नहीं जा सकता। उनके मजबूत इरादों का ही कमाल था कि वे कल की चिंता किये बिना ही अखबार प्रकाशन जैसे नये उद्यम में कूद पड़े। इसके प्रति उनकी संजीदगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि समय के साथ उन्होंने हर वो आधुनिक तकनीकी अपनायी जिसमें वह किसी से पीछे न रहे। अखबार प्रकाशन की श्रृंखला में बाबू साहब ने वर्ष 1991
में पूर्वांचल समेत काशी की मस्ती को खबरों के माध्यम से अवगत कराने के लिए 'काशीवार्ता' का प्रकाशन शुरू किया लेकिन इस बीच वर्ष 1993 में हृदय गति रूक जाने से उनका निधन हो गया।
ऐसे में अखबार को चलाने की जिम्मेदारी उनके युवा पौत्रों सुशील सिंह व सुनील सिंह के ह के कंधों पर आ पड़ी। दोनों भाइयों ने अपने दादा जी के सपनों को साकार करने का बीड़ा उठाया और उनके बताये रास्ते पर चलते हुए आगे बढ़ते गये। आज 'काशीवार्ता' न केवल काशी की धड़कन बन चुका है
बल्कि प्रगति के सोपान पर यह पूरी मजबूती के साथ आगे बढ़ रहा हैं। 'काशीवार्ता' न सिर्फ वाराणसी बल्कि पूरे पूर्वांचल का एक अग्रणी सांध्य हिन्दी दैनिक बन चुका है।
एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले बाबू भूलन सिंह का सहकारिता व मीडिया के क्षेत्र में शोहरत की बुलंदियों को छूना निःसंदेह युवा पीढ़ी को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। ऐसी महान शख्सियत को उनकी 31वीं पुण्यतिथि पर शत्-शत् नमन