Shaurya News India
इस खबर को शेयर करें:

 वाराणसी।यह भगवान विश्वनाथ की अनुकंपा ही कहिए या मां गंगा का आशीर्वाद कहिये कि मोदी गुजरात के अपने कर्म क्षेत्र वडनगर के बाद काशी आए और काशी से उन्होंने जो राजनीति की निर्विघ्न विजय यात्रा प्रारम्भ की उसका अब दुनिया में कोई विकल्प नहीं है.

अब तक संसार के सर्वोच्च राजनेता,व्यापारी, उद्यमी अभिनेता सभी काशी आये और कुछ न कुछ अपना योगदान यहां के विकास में देकर ही गए. मां गंगा और दान क्षेत्र काशी की महिमा है कि अब तक मोदी जी 43 बार अपने संसदीय क्षेत्र में आ चुके हैं और हर बार हजारों करोड़ की परियोजनाएं देकर ही गए, ,जिससे काशी को केंद्र में रखकर सम्पूर्ण पूर्वांचल का अपरमित विकास हुआ.

 


प्रधानमंत्री ने लगातार तीसरी बार अपना क्षेत्र काशी क्यों चुना? इसके पीछे कारण क्या है? अगर हम इसकी गहन विवेचना करें तो देखेंगे कि हिंदी भाषी क्षेत्र का जो प्रमुख स्थान है उसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश अहम भूमिका रखता है. काशी इन प्रदेशों का हृदय स्थल है. इन प्रदेशों के व्यक्तियों की लोक आस्था का केंद्र है. इन प्रदेश के व्यक्तियों की पूजा-पाठ का मुख्य धार्मिक स्थल यही है और हिंदू सनातन धर्म का जो प्रवाह चलता है, आज जो रणनीति का प्रधान त्वरण है, उस प्रवाह का त्रिकोण काशी, अयोध्या और प्रयाग है. बीच में नाभि के रूप में विंध्याचल में मां विंध्यवासिनी का केंद्र है.


ये सब अविनाशी काशी के 84 कोष परिक्रमा के विस्तृत क्षेत्र में ही आते हैं. प्रधानमंत्री जी ने समय की नजाकत को भांपते हुए भारत की हिंदू सनातन संस्कृति को सम्मान व सनातन मतावलम्बियों को सद्भाव प्रदान करने हेतु अपनी कर्मस्थली गुजरात को छोड़कर काशी आए. काशी ने उनका दिल खोलकर सहर्ष स्वागत किया, और भगवान काशीष का प्रसाद रहा की तीसरी बार फिर यहीं से चुनाव लड़ने जा रहे हैं.

 


राजनीतिक दृष्टि से देखें तो 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पंडित कमलापति त्रिपाठी भी काशी से लड़े थे और मंत्री बने थे. 1984 में श्याम लाल यादव भी काशी से ही लड़े थे और मंत्री हुए. काशी, कभी किसी को निष्फल नहीं होने देता. कुछ ना कुछ सबको फल मिलता ही रहता है 2014 में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी जी जब पहली बार यहां से चुनाव लड़े तो लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की. 2019 में मोदी जी फिर काशी से अपनी चुनाव यात्रा शुरू की और उनकी विजय यात्रा का अंतर 5 लाख से ज्यादा था. पिछली बार उनकी प्रतिद्वंदी रहीं शालिनी यादव अब भाजपा में हैं और मोदी का ही राग अलाप रही हैं. यह मोदी जी के कुशल नीति का परिणाम है कि जो आया वह उनका ही हो गया.

 


मोदी जी की राजनीति की काशी की जो भाव भूमि है, उसके पीछे उनकी आस्था है तथा जन-जन की लोक आस्था को साधने की साधना भी है. और परिणाम यह रहा कि जब उन्होंने सनातन धर्म के मंदिरों संस्थाओं मतों का सांस्कृतिक-संवर्धन शुरू किया तो सबसे पहले उन्होंने काशी को ही चुना और विश्वनाथ धाम का ऐतिहासिक लोकार्पण स्वयं पूर्ण भक्तिभाव से किया. यहां एक बात और स्पष्ट कर देना चाहता हूं की सर्वाधिक लगभग 180 से अधिक जो विचारभाव भूमि से समान सीटें लोकसभा की हैं,

 

वह इसी काशी के परिक्षेत्र और प्रयागराज के परिक्षेत्र में ही हैं और जो सम्पूर्ण हिंदी भाषी क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभाती हैं. इसकी वास्तविकता और प्रयोग धर्मिता का इतिहास रहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी प्रयागराज की फूलपुर लोकसभा निर्वाचन सीट से तीन बार जीते थे, उसके पीछे भी यही कारण थे.


अब जरा गणितीय दृष्टि से काशी का आकलन करें तो काशी क्षेत्र में हिंदुओं की आबादी 75% है और 20% मुस्लिम हैं. पांच प्रतिशत सभी अन्य धर्म के मानने वाले हैं. इस लोकसभा सीट की 65% आबादी शहरी है और 35% ग्रामीण है जिसमें अनुसूचित जाति का प्रतिशत दस है और जनजातियों का भी प्रतिशत लगभग 0.7 है. राजनीति की हवा यहीं से उठती है. इसी लोकसभा के अनुगमन से जहां मिर्जापुर, चंदौली, जौनपुर, गाजीपुर की सीट बिना प्रयास सफल होती रहती हैं. पिछले चुनाव में डॉक्टर महेंद्र नाथ पांडे, अनुप्रिया पटेल, दोनों इसी क्षेत्र के कारण जीते और मंत्री पद मिला. मनोज सिन्हा को रेल और बाद में पराजय के बाद भी उन्हें जम्मू कश्मीर का राज्यपाल बनाया गया.

 


पूर्वांचल की राजनीति में काशी का महत्व लोक आस्था के केंद्र के नाते नेतृत्व करने वाले राजनीतिज्ञों के चुनाव के नाते तो है ही, साथ ही साथ इससे सटे करीब 15 जिलों के जो बुद्धिजीवी, संभ्रांत चिंतक और राजनीति को दशा-दिशा देने वाले लोग हैं वे लोग भी काशी में ही निवास करते हैं. सांस्कृतिक राजधानी और उसकी विरासत के रूप में काशी हिंदू विश्वविद्यालय भारत के वांग्मय और शास्त्रीय रक्षा की दृष्टि से संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, गांधीवाद और गांधी की कर्मभूमि पर आधारित काशी विद्यापीठ आदि शैक्षणिक स्थान भी महत्वपूर्ण है, जो राजनीति की समयानुसार वोट निर्धारण की मीमांसा करते रहते हैं.

 

सांस्कृतिक संवर्धन में चाहे वह रामनगर की रामलीला हो, चाहे वह रामेश्वर का काशी धाम हो, चाहे वह पंचकोसी परिक्रमा हो, चाहे वर्तमान में बन रहे स्वर्वेद और सारनाथ जैसे पवित्र पावन स्थल हों, लोगों की दृष्टि काशी पर ही रहती है. उनकी इस दृष्टि को एक चिंतन मिलता है और जब वह चिंतन सकारात्मक रूप से सनातन संस्कृति के लिए मिलता है तो उसका परिणाम राजनीति में आज सफल दिखाई दे रहा है.


आज जन जन में ज्ञानवापी की मुक्ति और कृष्ण जन्म भूमि की चर्चा आम बन गयी है और आस्था के भाव भरे जन जन सैलाब का नारा है कि "अबकी बार,चार सौ पार". इसलिए काशी नेतृत्व करती चली आ रही है. प्रधानमंत्री जी का क्षेत्र होने का परिणाम यह हुआ की काशी की परिधि में जितने जिले थे आज वह सारे जिले नेशनल हाईवे से जुड़े हुए हैं. काशी परिक्षेत्र के लगभग 40 स्टेशनों का कायाकल्प हो चुका है,

 

काशी के परिधिस्थ पांच नए हवाई अड्डे बन चुके हैं. वाराणसी का अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बन चुका है. हस्तशिल्प का सबसे बड़ा केंद्र प्रधानमंत्री की अनुकंपा से काशी में ही उसका संकुल है. सहकारिता के क्षेत्र का अमूल का दुग्ध उत्पाद सबसे बड़ा कारखाना जो लगभग 20000 लोगों को रोजगार दे रहा है, वह प्रधानमंत्री के क्षेत्र में ही बन रहा है. देश के सबसे बड़ा स्टेडियम का निर्माण भी कार्यशील है. विकास की जितनी परियोजनाएं हैं, लगभग सभी काशी में चल रही हैं और अगल-बगल के जिलों के लिए नवचारक बनकर वहां भी उनके विकास में योगदान दें रही हैं.

 


प्रधानमंत्री मोदी की जो आस्था है, उनकी सनातन के प्रति जो भक्ति है, उसके प्रभाव से काशी के अगल-बगल क्षेत्र में जातिवाद की प्रचंडता का प्रभाव भी घटता जा रहा है. कभी पूर्वांचल की गिनती अविकसित क्षेत्रों में होती थी, परंतु 2014 में प्रधानमंत्री जी ने जब से काशी लोकसभा को चुना है

 

तब से लगातार पूर्वांचल, भारत की सुदृढ़ अर्थव्यवस्था में अपना महत्व रख रहा है. यह क्षेत्र सबसे आर्थिक रूप से उर्वर हो रहा है, पर्यटन का सबसे बड़ा केंद्र बन रहा है और शिक्षा तथा समता भरी सामाजिक श्रेष्ठता की यहां मिसाल कायम हो रही है.

 


भारतीय संस्कृति के प्राच्य वैभव और उसके प्रभाव को विकास की मुख्य धारा में लाकर उन्होंने लोगों के अंदर जो देश के प्रति नैतिक आस्था प्रकट की है, राष्ट्रवाद के नैतिक चिंतन का जो आयाम दिया है,

उसमें सबसे बड़ी उपादेयता इस क्षेत्र की रही है. वह दिन दूर नहीं जब भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी अविनाशी काशी और सांस्कृतिक गौरव की राजधनी प्रयाग और प्रभु श्रीराम की जन्म भूमि अयोध्या का यह सत्य सनातन संस्कृति का त्रिभुज संपूर्ण दुनिया में श्रद्धा भरी दृष्टि से देखा जाएगा. आर्थिक विकास का प्रमुख संकुल बनेगा, तुलसी, कबीर, रविदास, रामानंद बुद्ध, के भावभूमि का नमन सम्पूर्ण विश्व करेगा.
साभार

 

इस खबर को शेयर करें: