प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के बाल गृहों की खस्ता हालत पर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा है कि बाल गृहों में रह रहे बच्चों को न तो पौष्टिक आहार मिल रहा और न ही उन्हें सूरज की रोशनी, न ही ताजी हवा ही मिल रही। कोर्ट को सरकार के वकील ने प्रदेश सरकार की तरफ से उठाए गए कदमों की जानकारी दी।
कोर्ट ने इसे अपर्याप्त मानते हुए सचिव महिला एवं बाल विकास विभाग से हलफनामा मांगा है। यह आदेश चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर तथा जस्टिस अजय भनोट की खंडपीठ ने कायम जनहित याचिका पर दिया है।
अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी और अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता रामानंद पांडेय ने कोर्ट को बताया कि सरकार इस मामले में गंभीर है और मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने के लिए सभी जरूरी कदम उठा रही है। इस पर कोर्ट ने कहा था कि बाल गृहों की स्थिति जेलों से भी बदतर है। यह स्थिति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21के तहत नागरिकों को मिले मौलिक अधिकारों का हनन है।
कोर्ट ने बाल गृहों की कमियों को तुरंत दूर करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि मामले की अगली सुनवाई पर महिला एवं बाल विकास विभाग यूपी के प्रमुख सचिव बाल गृहों का अवलोकन कर बच्चों की संख्या, बाल गृहों की संख्या बताएं और उसके स्थिति में सुधार के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी व्यक्तिगत हलफनामा दें।
कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के बाल गृहों की स्थिति में सुधार के लिए कुल नौ बिंदुओं पर सुझाव मांगा है। इसके साथ ही कहा कि बालगृहों के बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए यूपी सरकार उसके सुझावों पर तुरंत कार्रवाई करे।
रिपोर्ट- धनेश्वर साहनी