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Bihar News : बिहार के कुमार पंचायत की श्री जगदम्बा पुस्तकालय मेरे भवन के जिर्ण-श्रीण अबस्थाओ को देख मुझ पर दया मत दिखानाl

मेरी इतिहास काफ़ी सुनहरी और जड़े काफ़ी गहरी है l मैं अंग्रेज ज़माने सन 1939 से ही इस कुमार पंचायत की शिक्षा वाहिनी केंद्र रही हूँ l मेरे यहाँ की पुस्तके पढ़कर न जाने कितने लोग, इंजीनियर, ओवरसियर , शिक्षक, प्रोफेसर व डॉक्टर बने l मुझे अपनी विरासत पर सदा ही गर्व रहा है, कभी मैं पूरे कुमार पंचायत की शिक्षा केंद्र के साथ-साथ गाँव के विकाश, सूचना प्रसार के साथ ही पंचायत भर के न्याय व्यवस्था का केंद्र रही हूँ l 1939 में रेडियो जब अत्याधुनिक सुचना प्राप्त करने का माध्यम था, और हर आम लोगो के पहुंच के बाहर भी तब पुरे कुमार पंचायत के बुद्धिजीवी लोग मेरे प्रांगण में आकर बीबीसी द्वारा प्रसारित समाचार सुनने आते थे l


परन्तु आज मैं बहुत पीरा में हूँ, मैं इस कदर ग्रामीण राजनीती की शिकार हो गईं हूँ की किसी से कुछ कहते हुए भी लगता ही की मै अपने गौरवमयी इतिहास को ही कलंकित कर रही हूँ l


 गाँव में जब प्रधान का चुनाव हुआ और स्कूल सहित कई यात्री कुंज, धर्मशाला और पंचायत भवन का निर्माण हुआ तो मेरी भी उम्मीद इन प्रधानों से जगी, की शायद मेरी भी कोई सुध लेगा परन्तु बड़े दुःख से कह रही हूँ की किसी ने मेरा सुध तक लेना मुनासिफ नहीं समझा l
कई पूर्व प्रधानों (मुखिया) ने मुझे टोला बाद की नजरों से देखा और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया, परन्तु जब अपने ही टोला का मुखिया इसबार जीतकर आया तो एक बार फिर मेरी आश जगी की अब तो ये मेरी सुध जरूर लेगा और मेरी जर्ज़र भवन का जीर्णोद्धार कराकर फिर से मेरी खोई हुई गौरव को वापस दिलाएगा l पर जैसे-जैसे इस मुखिया का भी कार्यकाल वित रहा मै और भी घोर निराशा की ओर जा रही हूँ l
   

    मै अपनी दुःख कहाँ तक बताऊ, गाँव के कुछ शिक्षा प्रेमी युवा जिन्हें सच में मेरी फ़िक्र रहती थी, वो मेरे टूटे हुए दरवाजे और खिड़की को सही कराकर मुझे सुरक्षित करने का प्रयास कर रहे थे, सच कहु तो ऐसा लग रहा था की वो मेरे घाव पर मरहम लगाने का प्रयास कर रहे हो, तो मेरे टोला के मुखिया प्रतिनिधि ने उन युवाओं को न सिर्फ खिरकी दरवाजे लगाने से रोका बल्कि उन्हें यह अश्वसान देते हुए कहाँ की मेरे मुखिया बन जाने पर ये पुस्तकालय भवन जरूर बनेगा, ऐसे में फालतू में पैसे और समय क्यूँ बेस्ट करने से क्या फयदा है?
 संभावित प्रधान का बात सुनकर उन युवाओं के साथ ही मै भी काफ़ी खुश हुई, और मन ही उसे विजई भव का आशीर्वाद भी दे दी l


पर कर्यकाल के दो शाल से भी ज़्यदा समय वीत जाने पर जब मेरा सुध नहीं लिया गया तो मै काफ़ी विफर पड़ी हूँ, और हमें अब लगने लगा है की अभी तक तो मै टोला के नाम पर प्रतारीत हुई पर अब तो ये टोला बाला प्रधान मुझे अश्वशावन देकर भी मेरा सुध तक नहीं ले रहा ऐसे में मै काफ़ी ठगीहुई और पहले से ज़्यदा प्रतारीत महसूस कर रही हूं 
किसी ने मुझसे कहाँ ये मुखिया तुम्हारी भवन क्या बनाएगा, जिसे ना शिक्षा से मतलब है और न ही तेरी गौरवमयी विरासत से l


अरे जब वो कुमार ग्राम की जीवनदायनी बड़का कुआँ जिसका जल पीकर, नहाकर वो स्वं बड़ा हुआ, जहाँ पर बैठकर उसने वचपन से जवानी और जवानी से अवगतक का सफर तय किया, तुम्हे तो मालूल ही इस कुएं का पानी पुरा गाँव पिता था! ज़ब उसे उसकी सुध लेने का समय नहीं तो तेरी क्या खाख सुध लेगा! तो मै खीझकर उस व्यक्ति से बोली की वो तो उसमें जल सुख गया था इसलिए उसका सुध नहीं लिया होगा! इसपर उस आदमी ने मुझसे मुस्कुराते हुए बोला अरे पगली तुम कितनी भोली और मासूम हो जब सरकार सारे कुएं तालाब को जन जीवन हरियाली के तहत जीवन दे रही तो क्या इसमें जीवन नहीं आता? अरे यदि पानी निचे से नहीं भी निकलता तो कुएं के बगल में ही घर-घर नल जल योजना की टंकी लगवाता और उसका ऑवर फ्लो वाटर पाइप कुएं में डाल देता तो एक साथ कई नल-जल योजना से वंचित लोगो के घर तक पेय जल भी मिल जाता और गाँव के सबसे महत्वपूर्ण धरोहर रूपी कुएं को जीवन भी मिल जाता l


अब भी बात समझ में नहीं आई तो कैसे समझाऊ तुम्हे पगली?  कमसे कम ये मुखिया जी तो तेरा संकट नहीं हरेंगा, क्योंकि जो खुद कीचड़ भरे रास्ते पर चलकर हर बार झंडा तोलन करने जाता है , और उस रास्ता को बनाने के जगह रोकने में सहयोग करता हो! उसे खुद के आँखों से कटते देखकर भी रोकने का प्रयास न करता हो ! ऐसा प्रधान क्या खाख तेरा जीर्णोद्धार कराएगा?


मै उस आदमी की बात सुनकर बेहद हताश और निराश हो गईं, और यह मानने को मजबूर भी हो गईं की सच में मेरा कष्ट ये तो दूर नहीं ही कर पायेगा l परन्तु पता नहीं क्यूँ मन के किसी कोने में अब भी थोड़ा उम्मीद बची है की हो सकता है किसी दिन मन बदले, जमीर जागे ना जागे पर टोलाबाद की ही भावना जाग जाये और मेरा दुःख हर ले और मुझपर कृपा कर दे l
मै आज भी आशा भरी निगाहो से सभी को देख रही हूँ की कोई तो मेरा उद्धार करें l मुझे लगता की मैंने किसी के साथ कभी किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं की तो फिर लोग मेरे साथ ऐसा क्यूँ कर रहा है?
क्या सच में इस बार का मुखिया भी मेरा भवन निर्माण नहीं करएगा?
क्या मै इस बार भी लोगो के हिन् भावनाओ और तुच्छ राजनीती की शिकार हो जाउंगी?


मै तो शिक्षा दायनी माँ हूँ, ऐसे में मेरे सभी पुत्र ही है, और कोई भी माँ अपने पुत्र को श्राप भी नहीं दे सकती, बस आशा और उम्मीद कर सकती हूँ की आखिर कोई तो सच्चा पुत्र होगा जो मेरे साथ गाँव और पंचायत का भी दुःख हर लेगा

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