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वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी भवन में विरासत कक्ष का उद्घाटन किया गया। इस दौरान भाषा व देश की संपन्न विरासत को लेकर चर्चा हुई। साथ ही लोगों को अपनी विरासत को पहचानने और याद रखने की सीख दी गई। 

इस अवसर पर बीएचयू के प्रसिद्ध न्यूरो चिकित्सक प्रोफेसर विजयनाथ मिश्र ने कहा कि विरासत की चिंता हर किसी को होनी चाहिए। एक समृद्ध विरासत हमेशा अपने वर्तमान को निर्देशित करती है। उन्होंने कहा कि विरासत की पहचान से हर किसी का वर्तमान समृद्ध होता है। इस अवसर पर हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो वशिष्ठ द्विवेदी ने कहा कि हिंदी की सम्पन्न विरासत को समझना खुद को नई रचनात्मकता के लिए तैयार करना है। हिंदी विभाग की विरासत हमारे वर्तमान को आलोकित करती है। उन्होंने विरासत नाम से लिखी अपनी एक ग़ज़ल भी सुनाई।

इस कक्ष के जुड़े प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने हिन्दी विभाग की समृद्ध विरासत पर विस्तार से बात की। कहा कि हमारी यह विपुल विरासत हमें कृतज्ञ और शक्ति सम्पन्न बनाने के साथ हमारा मार्गदर्शन भी करती है। वर्तमान की समृद्धि के लिए हर किसी को विरासत के अग्रगामी मूल्यों को पहचानना चाहिए।

अवसर पर प्रो अखिलेश कुमार, प्रो ज्ञानेश्वर चौबे, प्रो प्रभाकर सिंह, डॉ अशोक ज्योति, डॉ नीलम कुमारी, डॉ विंध्याचल यादव ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम में लोक कलाकार अष्टभुजा मिश्र के साथ शोध छात्रा कुमारी अलका और 'ताना-बाना' समूह के डॉक्टर भागीरथ एवं देवेंद्र दास ने कबीर और रविदास के भजन के प्रस्तुति भी की।

कार्यक्रम में प्रो.विजयनाथ मिश्र ने प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल को तुलसीदास की सबसे पुरानी एवं प्रामाणिक तस्वीर भेंट की। वहीं युवा आलोचक व कवि डॉ विंध्याचल यादव ने 'लाल कुर्सी' नाम की कविता का पाठ भी किया। कार्यक्रम का संचालन शोध छात्र अक्षत पांडे और धन्यवाद ज्ञापन जूही त्रिपाठी ने किया।

 

 

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