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यह अत्यधिक आश्चर्यचकित करने वाला तथ्य है कि 145 करोड़ की विशाल जनसंख्या वाला भारत देश, ओलम्पिक खेलों में मात्र 117 और पेराओलम्पिक खेलों में मात्र 84 खिलाड़ी ही प्रतिभाग करने हेतु भेज पाता है। यद्यपि भारत ने ओलम्पिक पर 500 करोड़ रूपये का व्यय किया, परन्तु भारत मात्र 7 पदक, जिनके अन्तर्गत 1 रजत तथा 6 कांस्य सम्मिलित हैं,
ही प्राप्त कर पाया। इसके इतर हमारा पड़ौसी देश पाकिस्तान एक स्वर्ण पदक जीतकर तालिका में भारत से ऊँचे पायदान पर पहँचने में सफल रहा, हमारा दूसरा पड़ौसी देश चीन 40 स्वर्ण सहित कुल 91 पदक प्राप्त करने में सफल रहा। इतना ही नहीं, जनसंख्या में हमसे 4 गुना छोटा देश, अमेरिका 40 स्वर्ण सहित कुल 126 पदक जीतकर प्रथम स्थान पर पहुँच गया।
200 करोड़ रूपयों का व्यय पैराओलम्पिक खेलों के लिए किया गया, जिसके परिणामस्वरूप रविवार की रात्रि तक भारत को 7 स्वर्ण, 9 रजत एवं 13 कांस्य पदक प्राप्त हो चुके हैं और आशा है कि अंतिम दिन में इस संख्या में कुछ वृद्धि होगी। ये सब पदक प्राप्त कर हम भारतीयों ने ‘पेरिस 2024‘ की आंशिक सफलता से युक्त कहानी का सजृन किया। इस कहानी में विनेश फोगाट के साथ घटित हुई घटना भी एक यक्ष प्रश्न के समान विद्यमान है,
जिसके विषय में हमारे खेल मंत्री माननीय मनसुख मांडविया ने संसद में बताया कि सरकार ने इस प्रतिभावान खिलाड़ी पर 70 लाख रूपये व्यय किए। जब वह खिलाड़ी प्रतियोगिता में स्वर्ण अथवा रजत पदक प्राप्त करने के निकट पहुँच चुकी थी, तभी उसे मात्र 100 ग्राम अधिक वजन होने के कारण प्रतियोगिता में अयोग्य ठहरा दिया गया। इस घटना की संसद से लेकर गली कूचों तक अत्यधिक गूंज हुई और सम्पूर्ण देश ने विनेश फौगाट के अयोग्य घोषित होने के कारणों पर अश्रु बहाए, परन्तु किसी ने इस पर विचार नहीं किया कि इस सम्पूर्ण घटना का दोषी कौन है।
ओलम्पिक खेलों में चयनित खिलाड़ियों के साथ डाइटीशियन, फिजियोथेरेपिस्ट, चिकित्सक, मैनेजर, प्रशिक्षक आदि बहुत सारे जिम्मेदार व्यक्तियों का समूह साथ जाता हैं, जिनका कार्य सतत् रूप से एक-एक खिलाड़ी की गतिविधियों पर पैनी दृष्टि रखकर देखभाल करना होता है। एक खिलाड़ी का वजन विशेषतया कुश्ती के दिन, प्रतियोगिता से पूर्व 5-6 बार मापा जाता है और वजन घटने और बढ़ने के ऊपर पूर्ण दृष्टि रखी जाती है, उस खिलाड़ी पर विशेषतया ध्यान दिया जाता है जिसका वजन सम्बन्धित खेल की सीमा अर्थात् किनारे पर चल रहा हो।
विनेश फौगाट पर जब सरकार 70 लाख रूपये व्यय कर रही थी, तब टीम के साथ सम्मिलित जिम्मेदार अधिकारीगण क्यों जागरूक नहीं थे और भारत को जो सम्मान उस खिलाड़ी की प्रतिभा के कारण मिलना निश्चित था, उसके ना मिलने के लिए दोषी अधिकारियों को दंडित क्यों नहीं किया गया। इसके लिए भारत की जनता, ओलम्पिक अधिकारियों से इस विषय पर स्पष्टीकरण अवश्य चाहेगी। उपरोक्त सारी गतिविधियों का आंकलन करने पर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि कहीं न कहीं, कुछ न कुछ षडयंत्र अवश्य ही निहित है।
भारत आज जनसंख्या में विश्व का अग्रणी देश बन चुका है। इतनी विशाल जनसंख्या में से ओलम्पिक के लिए मात्र 117 खिलाड़ी ही भारत का प्रतिनिधित्व कर पाये, ओलम्पिक में भारत के खिलाड़ियों की कम संख्या का होना एक चिंताजनक स्थिति है, जिसका उत्तर किसी न किसी स्तर पर हमारे देश-प्रदेश के खेल मंत्रियों को देना ही होगा।
भारत देश की भूमि, वायु और जल स्वयं में इतनी शक्तिसम्पन्न हैं कि यहाँ जन्म लिए भारतीय खिलाड़ी विश्व पटल पर अपनी सर्वश्रेष्ठ पहचान बना सकते हैं। क्या भारत का नासूर स्वरूप भ्रष्टाचार अब खेल जगत में भी व्याप्त हो चुका है। यही कारण है कि हम भारतीय उत्कृष्ट प्रतिभा से युक्त युवाओं को ओलम्पिक खेलों के स्तर पर तैयार नहीं करवा पा रहे हैं।
इस विषय पर गम्भीरता से चिंतन तथा आंकलन करने की अतिआवश्यकता है। यदि भ्रष्टाचार की जड़े यहाँ भी फैल चुकी है तो भारत देश के लिए उस मंत्रालय को चिन्हित करके उस भ्रष्ट मंत्री या अधिकारी को तुरन्त अपदस्थ करना होगा।
हम भारतीय अपने पैराओलम्पिक में प्रतिभागी खिलाड़ियों के प्रति वास्तव में कृतज्ञ हैं। पैराओलम्पिक के प्रतिभागियों ने पूर्व में हुए पैराओलम्पिक खेलों की अपेक्षा अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। हम आशा करते हैं कि भविष्य में भी वे सम्पूर्ण देश के समक्ष अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगे, परन्तु भारत की जनसंख्या के अनुरूप यह प्रदर्शन भी निराशाजनक है एवं इसमें अत्यधिक सुधार की आवश्यकता है। खेलों में राजनीति नहीं प्रतिभा चाहिए, भ्रष्टाचार नहीं देशभक्ति चाहिए।
योगेश मोहन
( वरिष्ठ पत्रकार और आईआईएमटी यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति )