Mandali Movie Review इस हफ्ते कई ऐसी फिल्में सिनेमाघर में रिलीज हुई हैं जो सीमित बजट की थीं और स्टारडम की चमक-दमक से दूर मगर इन फिल्मों की कहानियों ने प्रभावित किया। ऐसी ही फिल्म है मंडली जो रामलीला के कलाकारों की निजी जिंदगी में झांकती है और पैसे के अभाव के बावजूद उनके जज्बे को सलाम करती है।
फिल्म में पुरुषोत्तम एक कलाकार हैं, जो की रामलीला (भारत के हृदय स्थल में हिंदू धर्म ग्रंथ, रामायण पर आधारित एक संगीतमय मंच प्रदर्शन) में भगवान लक्ष्मण की भूमिका निभाता हैं और उसे अपने जीवन से भी बड़ा मानता हैं. वह अपनी पवित्रता को ख़राब करने वाली बुराइयों से लड़ते हुए बुरी तरह टूट जाता है. लेकिन अपनी ताकत से वह अपने सपने और जुनून को जीवित रखने के लिए 'राख से फ़ीनिक्स की तरह'' फिर से उठ खड़ा होता है".
फिल्म के विषय और उसकी गंभीरता के बारे में समाजसेवी बृजेश पांडे कहते है कि, "यह कहानी कुछ ऐसे कलाकारों के इर्द-गिर्द घूमती है जो संगीत नाटक रामलीला में काम करते हैं. प्राचीन एवं पवित्र हिन्दू धर्म ग्रन्थ रामायण, यह कलाकारों की अपनी कला में गहरी आस्था और रामायण में विश्वास और समाज के शक्तिशाली लोगों के बीच संघर्ष को प्रतिबिंबित करता है जो दर्शकों को आकर्षित करने के लिए अश्लील नृत्यों को शामिल करके अपने वित्त और व्यक्तिगत लाभ के लिए रामलीला का शोषण करते हैं। मंडली शक्ति बनाम विश्वास के बारे में है".
हिंदी सिनेमा में कई फिल्मों में रामलीला का संक्षिप्त चित्रण देखने को मिला है। हालांकि, रामलीला में काम करने वाले कलाकारों की जिंदगी को बहुत कम ही कहानियों में पिरोया गया है। फिल्म ‘मंडली’ इसी विषय पर आधारित है। यह रामलीला में कार्य करने वाले कुछ कलाकारों के जीवन में घटी घटनाओं और उनके अनुभवों से प्रेरित है।
क्या है मंडली की कहानी?
कहानी रामलीला में काम करने वाले पुरु उर्फ पुरुषोत्तम चौबे (अभिषेक दूहन) की है। पुरु को उसके चाचा रामसेवक (विनीत कुमार) ने रामलीला में काम करने के प्रशिक्षित किया है। रामलीला में पुरु का चचेरा भाई सीताराम चौबे (अश्वथ भट्ट) राम की भूमिका में विख्यात है।
रामलीला में भीड़ जुटाने के मकसद से आयोजक पहले आइटम सॉन्ग का आयोजन करते हैं। रामसेवक इसके सख्त खिलाफ होते हैं। रामलीला के दौरान एक दिन सीताराम की गलती से उसका मंचन नहीं हो पाता है। उन्हें काफी अपमान का सामना करना पड़ता है।
वहां बिट्टन कुमारी (आंचल मुंजाल) के साथ पहले अनबन होती है, फिर प्रेम उसके बाद विवाह। बिट्टन का कड़वा अतीत रहा है। घटनाक्रम मोड़ लेते हैं। ओंकार और पुरु के बीच रार छिड़ जाती है। रामलीला मंचन के पहले राम-लक्ष्मण की आरती उतारने के दौरान आमना-सामना होने के बाद ओंकार अपनी भड़ास निकालता है
कैसी है स्टोरी और स्क्रीनप्ले?
सीमित बजट में बनी यह फिल्म रामलीला के पीछे की कई सच्चाई को बयां करती है, जिस पर शायद ही किसी की नजर जाती हो। 'मंडली' इस कला के प्रति उदासीनता की ओर भी ध्यान इंगित करती है। पल्लव जैन, विनय अग्रहरि और राकेश चतुर्वेदी ओम द्वारा लिखी कहानी और उसके पात्रों की सादगी दिल को छू जाती है।
वहीं, राकेश चतुर्वेदी ओम द्वारा निर्देशित यह कहानी बीच-बीच में भक्ति के सागर में डुबो देती है। 'मंडली' बताती है कि इस कला को जीवित रखने के कलाकारों में उसके प्रति कितना समर्पण, लगाव और भक्ति है।
तकलीफों के बावजूद वह अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करते। कलाकारों के प्रति लोगों की मानसिकता को भी फिल्म स्पर्श करती है। फिल्म अपनी सभ्यता और संस्कृति को समेटने की ओर भी इशारा करती है। फिल्म का क्लाइमैक्स प्रभावी और शानदार है।