Shaurya News India
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  वाराणसी को प्रधानमंत्री मोदी जी का संसदीय क्षेत्र होने का "गौरव" प्राप्त है। आज बाढ़ की त्रासदी में कराह रहा है बनारस। गंगा और वरुणा के उफान से प्रभावित नागरिक घर छोड़ने को मजबूर हैं, लेकिन जिन राहत शिविरों में शरण मिली है,वे खुद एक नए संकट का केंद्र बन चुके हैं। राहत शिविरों में न राहत है, और न ही मानवता की न्यूनतम गरिमा के अनुरूप सुविधा सड़ांध मारती नालियां, बगैर दवाओं के अस्थायी मेडिकल टेबल, और अनियमित भोजनयही "प्रशासनिक तैयारी" की असल तस्वीर है।

कभी-कभी लगता है कि सरकार को अपने स्मार्ट सिटी के पोस्टर बदलने चाहिए – “स्वच्छता में नंबर एक, व्यवस्था में आखिरी पंक्ति”। 
   गंभीर हालातों पर कांग्रेस की ज़िला और महानगर कांग्रेस कमेटी ने ज़मीनी हकीकत को सामने लाने का बीड़ा उठाया।
जिला कांग्रेस अध्यक्ष राजेश्वर पटेल और महानगर अध्यक्ष राघवेंद्र चौबे ने एक संयुक्त निरीक्षण दल गठित किया, जिसने विभिन्न बाढ़ राहत शिविरों का प्रत्यक्ष दौरा किया।

इस दल ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि कई शिविरों में एक ही शौचालय का प्रयोग सैकड़ों लोग कर रहे हैं।

पीने के पानी की व्यवस्था कहीं बाल्टी पर निर्भर है तो कहीं नलों से बहता गंदा पानी ही एकमात्र सहारा है,

बच्चों व महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति चिंताजनक है, मगर चिकित्सा सहायता लगभग अनुपस्थित है,

राजेश्वर पटेल और राघवेंद्र चौबे  ने आज वाराणसी के अपर जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपकर इस त्रासदी की वास्तविकता से उन्हें अवगत कराया और तत्काल हस्तक्षेप की माँग की।

ज्ञापन में विशेष रूप से राज्य सरकार से मांग की गई कि:

सभी राहत शिविरों में मेडिकल टीम, एम्बुलेंस और मोबाइल स्वास्थ्य सेवा तत्काल भेजी जाए,

भोजन की आपूर्ति नियमित व पौष्टिक हो,

महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए अलग व्यवस्था सुनिश्चित हो,

और यह कि बाढ़ को केवल एक ‘वार्षिक रुटीन’ मानने की मानसिकता बदली जाए।


"राजनीति फोटो खिंचवाने की नहीं, ज़मीनी सच्चाई में उतरने की होनी चाहिए" – कांग्रेस नेतृत्व का व्यंग्यात्मक प्रहार

कांग्रेस नेताओं ने सवाल उठाया कि जब प्रदेश सरकार चुनावी उद्घाटन समारोहों और स्मारक शिलान्यासों पर करोड़ों खर्च कर सकती है, तो क्या बाढ़ पीड़ितों की रक्षा और सम्मानजनक जीवन के लिए उसके पास बजट, संवेदना और इच्छाशक्ति नहीं है?

जिला अध्यक्ष राजेश्वर अंग पटेल महानगर अध्यक्ष राघवेंद्र चौबे ने कहा, “राहत शिविरों में व्यवस्था का स्तर देख कर लगता है जैसे प्रशासन का मकसद बाढ़ से नहीं, बचे हुए लोगों की इच्छाशक्ति से लड़ना है।”
 “यह आपदा प्राकृतिक हो सकती है, लेकिन पीड़ितों के साथ किया जा रहा व्यवहार पूर्णतः प्रशासनिक लापरवाही और नीति विफलता का परिणाम है।”


क्या वाराणसी केवल चुनावी सभा की भूमि बनकर रह गई है, या इसे एक जीवित, साँस लेते, संघर्षरत शहर की तरह देखा जाएगा?
जब बाढ़ जाती है, तब सरकार राहत पैकेज की घोषणाएं करती है – लेकिन जब बाढ़ आती है, तब वही सरकार राहत शिविरों में गुम हो जाती है।
उक्त अवसर पर राजेश्वर सिंह पटेल, राघवेन्द्र चौबे, गिरीश पाण्डेय गुड्डू,अशोक सिंह,रमजान अली,विनोद सिंह कल्लू,राजू राम,हसन मेहदी कब्बन,आशिष केशरी,रोहित दुबे,संजीव श्रीवास्तव, सुशील पाण्डेय,कुँवर यादव,अब्दुल हमीद,डॉ विवेक सिंह, संतोष मौर्य, लोकेश सिंह,विनीत चौबे,आशुतोष पाण्डेय, हिमांशु सिंह,आशिष पटेल,बृजेश जैसल,शशि सोनकर, राजेश सोनकर, गोपाल पटेल,भगवती जी,हरि शंकर, रामजी गुप्ता, कृष्णा गौड़,बदरे आलम शमशाद,किशन यादव,समेत दर्जनों लोग उपस्थित रहे।।

 

रिपोर्ट विवेक जॉन

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