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नई दिल्ली । आदर्श आचार संहिता लगने के दौरान सरकार कोई भी नई घोषणा नहीं कर सकती है। ऐसी योजनाएं लागू नहीं की जा सकती जिनसे चुनावी प्रक्रिया प्रभावित होती हो।

 

 

परियोजनाओं का लोकार्पण, शिलान्यास या भूमिपूजन नहीं किया जा सकता है। सरकारी विमान या सरकारी बंगले का इस्तेमाल चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जा सकता है।

 

 

कोई भी राजनीतिक दल जाति या धर्म के आधार पर मतदाताओं से वोट नहीं मांग सकता। किसी भी अधिकारी या कर्मचारी का ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। अत्याधिक अनिवार्यता होने पर निर्वाचन आयोग से सलाह लेकर कुछ किया जा सकता है।

 


चुनाव प्रचार के लिए सरकारी वाहनों का उपयोग नहीं होता। किसी भी धार्मिक स्थल का उपयोग चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जा सकता। किसी भी तरह की रैली या चुनावी सभा के लिए पुलिस प्रशासन की अनुमति लेनी होती है।

 

 

निर्धारित की गई राशि, जेवरात से ज्यादा लेकर लोग यात्रा नहीं कर सकते। सरकारी अधिकारी का प्रमोशन नहीं किया जा सकता है।अब सरकारें उपरोक्त सभी काम-काज प्रारंभ कर सकेंगी। मध्य प्रदेश की बात करें

 

 

तो एक हफ्ते के भीतर सबसे पहले अधिकारियों, कर्मचारियों के ट्रासंफर, पोस्टिंग का काम होगा। इसके लिए पहले ही इशारे मिल गए थे। इसके साथ ही अवैध कॉलोनियों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई। सीएम हेल्पलाइन शुरू होना और मेयर की जनसुनवाई जैसे काम शुरू हो जाएंगे।

 


16 मार्च 2024 को भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके चुनावों का ऐलान करते ही देश में आचार संहिता लागू हो गई थी। तब आयोग ने ऐलान किया था कि 19 अप्रैल से लेकर 1 जून तक सात चरणों में चुनाव करवाए जाएंगे। आयोग के अनुसार ये प्रक्रिया 6 जून से पहले पूरी कर ली जाएगी।

 

 

हुआ भी यही, आज 6 जून को आचार संहिता हटा दी गई। हर राज्य में निर्वाचन अयोग का कार्यालय रहता है। यहां पर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी होते हैं, जो भारत निर्वाचन आयोग के निर्देशों का पालन करवाते हैं और राज्य केंद्र में समन्वय की भूमिका निभाते हैं।आदर्श आचार संहिता की शुरुआत 1960 के केरल विधानसभा चुनाव से हुई थी।

 

1962 के आम चुनाव के बाद 1967 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भी आचार संहिता का पालन हुआ। बाद में उसमें और नियम जुड़ते चले गए। जब बात चुनाव सुधारों की आती है तो नौवें चुनाव आयुक्त टीएन शेषन का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उन्होंने अपनी कार्यशैली से बताया कि चुनाव आयोग सरकार के अधीन काम करने वाला निकाय नहीं है। उन्होंने आयोग की स्वतंत्रता को सर्वोपरी रखा।

 

 

रिपोर्ट  चंचल सिंह

 

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