भारत देश में मुस्लिम समुदाय के लोग पुरानी रितिरिवाज के परंपरा के अनुसार 1400 साल पहले मुहर्रम के महीने की 10 तारीख को ही पैगम्बर मोहम्मद के नाती इमाम हुसैन को शहीद किया गया था. उसी गम में मुहर्रम की 10 तारीख को ताजिए निकाले जाते हैं. इस दिन शिया समुदाय के लोग मातम करते हैं।कर्बला की जंग हजरत इमाम हुसैन और बादशाह यजीद की सेना के बीच हुई थी. मान्यताओं के मुताबिक, मुहर्रम के महीने में 10वें दिन ही इस्लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपने 72 अनुआयियो के साथ जान कुर्बान कर दी थी. इसलिए मुहर्रम महीने के 10वें दिन मुहर्रम को मनाया जाता है.
भारत में ताजियादारी या ताजिया रखने का इतिहास तैमूर के काल से जुड़ा है, जिसे आम तौर पर अमीर तैमूर के नाम से जाना जाता है, जिसने 1398 ईस्वी में भारत पर आक्रमण किया था। कर्बला की तीर्थयात्रा से लौटने पर तैमूर ने पहली बार ताज़िया का निर्माण किया। इस जंग में इमाम हुस्सैन ने इस्लमुहर्रम की दसवीं तारीख को यौम-ए-आशूरा मनाया जाता है, इस महीने को गम के तौर पर मनाया जाता है. 1400 साल पहले इस महीने की 10 तारीख को अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद के छोटे नवासे इमाम हुसैन को उनके परिवार और 72 अनुयायियों समेत मार दिया गया था.इस दिन हजरत इमाम हुसैन के चाहने वाले खुद को तकलीफ देकर इमाम हुसैन की याद में मातम मनाते हैं। इमाम हुसैन की शहादत की याद में दुनियाभर में शिया मुस्लिम मुहर्रम मनाते हैं। इमाम हुसैन, पैगंबर मोहम्मद के नाती थे, जो कर्बला की जंग में शहीद हुए थे।
12वीं शताब्दी में ग़ुलाम वंश के पहले शासक कुतुब-उद-दीन ऐबक के समय से ही दिल्ली में इस मौक़े पर ताज़िये (मोहर्रम का जुलूस) निकाले जाते रहे हैं। इस दिन शिया मुसलमान इमामबाड़ों में जाकर मातम मनाते हैं और ताज़िया निकालते हैं। भारत के कई शहरों सहित लखनऊ में मोहर्रम में शिया मुसलमान मातम मनाते हैं.
रिपोर्ट- विनय पाठक