Shaurya News India
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साथियों,
मैं इतना बड़ा हिंदूवादी हूं कि दलित, पिछड़ी, वैश्य, सवर्ण समेत लगभग सभी जातियों के साथ संगठन में जुड़ने से पहले सहभोज कर चुका हूं और छुआछूत को इतना ज्यादा मानता हूं कि कुछ पटीदारों का छुआ भोजन नहीं करता क्योंकि घर के बर्तनों में वे मांसाहार करते हैं।

मुझे खुद कुर्सी नहीं चाहिए, परंतु जाति/अमीरी/रसूख देखकर मैं कुर्सी देना नहीं चाहता।

महासंघ या कोई भी निस्वार्थ भाव से हिंदू समाज को संगठित कर रहे हिंदू संगठनों का मैं बहुत सम्मान करता हूं, परंतु खुद से खुद को हिंदू हृदय सम्राट कहना मुझे नागवार लगता है।

मोदी-योगी जैसे नेता मुझे इतने पसंद हैं कि उनके बयान को ही मैं संविधान मानता हूं, परंतु नेताओं के साथ फोटो खिंचाने का इतना विरोधी हूं कि आज तक मैं किसी नेता के रैली में नहीं गया।

मैं भी चाहता हूं कि RSS की भांति हिंदू संगठनों के पास ड्रेस कोड हो, परंतु भगवा वस्त्र पहनकर लोगों के बीच जाना मुझे खुद के लिए असभ्यता लगता है।

भगवा वस्त्र मुझ जैसे सामान्य लोगों को अपनी हिंदूवादी हनक बनाने के लिए नहीं है, ये वस्त्र भारत का प्रेजेंटेशन है जो गृहस्थ जीवन में अत्यंत संयमित महापुरुषों और संतों का चोला है। जिस तरह जनेऊ पहन लेना विषय नहीं है बल्कि नियमों में रहकर पालन करना विषय है, उसी प्रकार भगवा वस्त्र है।

मैं भी भगवा धारण करता हूं, भगवान को भोग लगाते समय, तीर्थ क्षेत्र में, श्रीरामायण जी पाठ आदि समय में। पूज्य पिता जी के गुणों के कारण स्त्रियों में माता देखता हूं फिर भी मेरे पास इतनी हिम्मत नहीं होती है कि भगवा धारण करके सार्वजनिक होऊं क्योंकि भारत में स्त्रियां पूजी जाती हैं राक्षसियां नहीं और मुझे डर लगता है कि कच्चे उम्र में भगवा पहनकर गलती से भी किसी राक्षसी के अनुचित वेश का विचार ने अनुसरण कर लिया तो भगवा का अपमान हो जाएगा और मैं भारत का दोषी हो जाऊंगा। मैंने देखा है भगवा वस्त्र धारण किए कुछ लोग पूजनीय स्त्रियों को भी अपने गिद्ध की दृष्टि से राक्षसी ही देखना चाहते हैं जो कि वस्त्र का अपमान है।

जब भगवा धारण करूंगा तो सार्वजनिक जीवन छोड़कर भगवान प्रेमानंद जी महाराज के चरणों का धूल हो जाऊंगा, अभी माताजी-बाउजी के सेवा और बच्चों के पेट भरने की जिम्मेदारी ढो रहा हूं।
 

 

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