वाराणसीः लक्खा मेले में शुमार नाटी इमली का प्रसिद्ध भरत मिलाप अपनी पुरानी परम्पराओं के साथ संपन्न हुआ। यदुकुल के कांधों पर रघुकुल का मिलन देख लोगों की आंखें नम हो गई।
वाराणसी। धर्म की नगरी काशी में सात वार और तेरह त्यौहार की मान्यता प्रचलित है। कहा जाता है की यहां पर साल के दिनों से ज्यादा पर्व मनाये जाते हैं। नवरात्र और दशहरा के बाद रावण दहन के ठीक दूसरे दिन यहां विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप का उत्सव भी काफी धूम धाम से मनाया जाता है।शहर में इस पर्व का आयोजन कई अलग अलग स्थानों पर होता है लेकिन चित्रकूट रामलीला समिति द्वारा आयोजित ऐतिहासिक भरत मिलाप को देखने के लिए लाखों की भीड़ बुधवार को भरत मिलाप मैदान में उमड़ी थी।
नयनभिराम झांकी देख भाव-विभोर हुए भक्त
काशी के नाटी इमली भरत मिलाप मैदान पर बुधवार को तिल रखने की जगह नहीं थी। लंका से रावण का वध कर माता सीता और भाई लक्ष्मण और हनुमान के साथ पुष्पक विमान पर सवार हो भगवान् राम भरत मिलाप मैदान नाटी इमली पहुंचे। यहां कुछ ही देर बाद अयोध्या से भरत और शत्रुघ्न भी पहुंचे और मिलाप के चबूतरे पर आसीन हो गए। कुछ ही छण बाद नेमियों ने रामचरित मानस की चौपाइयां पढ़नी शुरू सूर्य तेजी से भारत मिलाप मैदान की उस ख़ास जगह पर रौशनी के लिए मानों आतुर हो गया जिसपर राम और लक्ष्मण दंडवत भरत शत्रुघन को गले लगाने दौड़ पड़ते हैं।
रौशनी पड़ते ही दौड़ पड़े राम-लक्ष्मण
शाम 4 बजकर 40 मिनट पर जैसे ही चबूतरे के एक निश्चित स्थान पर अस्ताचलगामी सूर्य की किरणें पहुंची भगवान श्रीराम और लक्ष्मण रथ से उतरकर भरत और शत्रुघ्न की तरफ दौड़ पड़े और उन्हे उठाकर गले लगाया । 3 मिनट की इस लीला को देखते ही पूरा मैदान हर हर महादेव और सियावर रामचंद्र की जय के जयघोष से गूंज उठा।
मेघा भगत ने शुरू की थी लीला
चित्रकूट रामलीला समिति के अध्यक्ष और भरत मिलाप के व्यवस्थापक बाल मुकुंद उपाध्याय ने बताया कि मेघा भगत भगवान श्रीराम को स्वप्न में आकर दर्शन दिए थे और यहां भरत मिलाप कराने का निर्देश दिया। मान्यता है कि यहां भगवान श्रीराम स्वयं उपस्थित होते हैं।
यादव बंधुओं ने निभाई परंपरा
इस दौरान मेघा भगत द्वारा स्थापित इस लीला में यादव बंधुओं ने परंपरा का निर्वहन किया और भगवान का पुष्पक विमान भरत मिलाप स्थल से अयोध्या तक पहुंचाया। उनका गणवेश देखते ही बनता था।