वाराणसी। शुरुआती दौर में न्यू मीडिया ने वास्तविकता को दर्शाया अब स्थिति यह हो गई है कि अब न्यू मीडिया अपनी रियलिटी गढ़ने लगा है। उसे इस बात से मतलब नहीं है कि जनता क्या देखना चाहती है। वह वही दिखा रहा है जो वह दिखाना चाहता है। इसका यह आशय नहीं है कि न्यू मीडिया का सामाजिक सरोकार नहीं रह गया है।
यह बातें प्रख्यात साहित्यकार मदन मोहन दानिश ने कहीं। वह बनारस लिट् फेस्ट के दूसरे दिन शनिवार को आयोजित संवाद में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि वह सामाजिक सरोकारों से जुड़ा तो है लेकिन पावर गेम की अपेक्षाओं के अनुरूप ढालकर दिखाता है।
न्यू मीडिया कहीं न कहीं हमारे अंदर की ओछी नकारात्मका को दिखाता है और उसी सक कमाता है। उन्होंने कहा कि तत्कालीन रचनाकारों ने हमारी, संस्कृति, परंपपरा, समाज पर पड़ने वाले इस दुष्प्रभावों पर सबसे अधिक बात की थी। उन्होंने जो आशंका व्यक्त की थी आज वह सभी आशंकाएं सत्य साबित हो रही हैं। इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव न्यू मीडिया तकनीक के रूप में सामने आया।
तकनीक ने सबको नि:संदेह सशक्त किया है लेकिन उसके कई खतरे भी हैं जिनसे हमारा समाज जूझ रहा है। भूमंडलीकरण के शुरुआती दौर में ही हिंदी साहित्य ने इसके खतरों से आगाह करा दिया था। एकमात्र हिंदी साहित्यकार ही थे जिन्होंने भूमंडलीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पहलुओं पर मुखर होकर अपना पक्ष रखा था। इस सत्र में मौजूद शैफी किदवई ने कहा कि इस दौर में पूंजी का भूमंडलीकरण हुआ है
। श्रम का भूमंडलीकरण होना अब भी शेष है। भूमंडलीकरण ने भाषा के बंधन को नि:संदेह तोड़ा है। साहित्य को नया आयाम दिया है। ओटीटी पर किताबों की बहुत अधिक बिक्री होना एक सशक्त प्रमाण है। इस सत्र में राकेश कुमार सिंह ने कहा कि भूमंडलीकरण एक माचिस की तरह है। इससे घर में खाना पकाने के लिए आग भी जला सकते या फिर किसी का घर जलाने के लिए आग लगा दें।
इस अवसर पर मुख्य रूप से बीएलएफ के अध्यक्ष श्री दीपक मधोक, उपाध्यक्ष अशोक कपूर व गोविंद सिंह, सचिव बृजेश सिंह, सह-सचिव अमित सेवारमानी, कोषाध्यक्ष धवल प्रकाश सहित मुकेश सिंह, एहसान खान, अम्बुज गुप्ता और डॉ.एसबी तिवारी आदि मौजूद थे।
रिपोर्ट -संतोष अग्रहरि