समस्या तो यह है कि जिसको आरक्षण दिया जा रहा है, वो सामान्य आदमी बन ही नहीं पा रहा है !
समय सीमा निर्धारित हो कि ~
वह सामान्य नागरिक
कब तक बन जायेगा ?
किसी व्यक्ति को आरक्षण दिया गया और
वो किसी सरकारी नौकरी में आ गया !
अब उसका वेतन ₹25000से ₹50000 व
इससे भी अधिक है, पर जब उसकी संतान हुई तो वह भी पिछडी ही पैदा हुई और हो गई शुरुआत !
उसका जन्म हुआ प्राईवेट अस्पताल में
पालन पोषण हुआ राजसी वातावरण में फिर भी वह गरीब पिछड़ा और सवर्णों के अत्याचार का मारा हुआ ?
उसका पिता लाखों रूपए सालाना कमा रहा है, तथा उच्च पद पर आसीन है !
सारी सरकारी सुविधाएं ले रहा है !
वो स्वंय जिले के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ रहा है, और
सरकार उसे पिछड़ा मान रही है !
सदियों से सवर्णों के अत्याचार का शिकार मान रही है !
आपको आरक्षण देना है बिलकुल दो, पर उसे नौकरी देने के बाद तो सामान्य बना दो ! ये गरीबी और पिछड़ा, दलित आदमी होने का तमगा तो हटा दो !
यह आरक्षण कब तक मिलता रहेगा उसे ?
इसकी भी कोई समय सीमा तय कर दो ?
या कि बस जाति विशेष में पैदा हो गया तो आरक्षण का अधिकारी हो गया, और वह क्या कभी सामान्य नागरिक नही होगा ?
दादा जी जुल्म के मारे !
बाप जुल्म का मारा !
अब पोता भी जुल्म का मारा !
आगे जो पैदा होगा वह भी जुल्म का मारा ही पैदा होगा !
ये पहले से ही निर्धारित कर रहे हो ?
वाह रे मेरे देश का दुर्भाग्य !
वाह रे महान देश !
जिस आरक्षण से उच्च पदस्थ अधिकारी, मन्त्री, प्रोफेसर, इंजीनियर, डॉक्टर भी
पिछड़े ही रह जायें, गरीब ही बने रहेंगे, ऐसे असफल अभियान को तत्काल बंद कर देना चाहिए !
जिस कार्य से कोई आगे न बढ़ रहा हो क्या उसे जारी रखना मूर्खतापूर्ण कार्य नहीं है ?
हम में से कोई भी आरक्षण के विरुद्ध नहीं, पर आरक्षण का आधार जातिगत ना होकर
आर्थिक होना चाहिए !
सबका साथ सबका विकास अन्त्योदय योजना लाओ अंत को सबल बनाओ !
और तत्काल प्रभाव से प्रमोशन में आरक्षण तो बंद होना ही चाहिए !"
नैतिकता भी यही कहती है, और संविधान की मर्यादा भी !
क्या कभी ऐसा हुआ है कि किसी मंदिर में प्रसाद बँट रहा हो तो-
एक व्यक्ति को चार बार मिल जाये और
एक व्यक्ति लाइन में रहकर अपनी बारी का प्रतिक्षा ही करता रहेगा ?
आरक्षण देना है तो उन गरीबों, लाचारों को चुन चुन के दो जो बेचारे दो समय की रोटी को आश्रित हैं चाहे वे अनपढ़ ही क्यों न हों !
चौकीदार, सफाई कर्मचारी, सेक्युरिटी गार्ड
कैसी भी नौकरी दो !
हमें कोई आपत्ति नहीं है और ना ही होगी !
ऐसे लोंगो को मुख्यधारा में लाना सरकार का सामाजिक व नैतिक उत्तरदायित्व भी है !
परन्तु भरे पेट वालों को बार बार
56 व्यंजन (छप्पन भोग) परोसने की यह नीति बंद होनी ही चाहिए !
जिसे एक बार आरक्षण मिल गया, उसकी अगली पीढ़ियों को सामान्य मानना चाहिये और आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिये !
अगर आप सभी इस बात से एकमत हो तो जन-जन तक पहुचायें !
रिपोटर जगदीश शुक्ला