1--पहले के जमाने में बढ़ बुजुर्ग लोग बागवान लगाने की बहुत शौकीन थे, जिसमें तरह-तरह के फल फूल इत्यादि मनुष्य को खाने के लिए मिलता था।
और पर्यावरण शुद्ध रहता था।
2--और आज के जमाने में मनुष्य बुद्धिजीवी होकर, मंदबुद्धि होते जा रहे हैं।
किसी के बेटे का शादी पड़ गया, तो बिना बारूद और बम पटाखा के अलावा उनके बारात का शोभा बिफल हो जाता है।
जो कि पर्यावरण प्रकृति से और मनुष्य के स्वास्थ्य से खेलना फितरत बन जाता है।
मनुष्य एक ज्ञानी होकर अज्ञानता बस सभी कुकर्मों पर आश्रित हो चुके हैं।
3--शहर बनारस में देखा जाए तो कहीं ना कहीं कोयले की भट्टी चल रही है कहीं ना कहीं खटाल खुला है इससे ना शहर स्वच्छ रहेगी ना मनुष्य का स्वास्थ्य ठीक रहेगा।।
हमारे वाराणसी के जितने अधिकारी गण है शासन प्रशासन है उनको तो सरकार के तरफ से काम करने पर अच्छा खासा वेतन भी मिल रहा है। लेकिन काम करना ही नहीं चाहते।
ऐसी वाला ऑफिस रूम छोड़ना ही नहीं चाहते। तब काहे को अपनी ड्यूटी को पूरा करेंगे।
बैठे भोजन दे मुरारी इन ऑफिसरो का फितरत बन गया है।
4-अगर कोई मिष्ठान की दुकान पर दही पनीर लस्सी की दुकान पर पहुंच जाइए तो भाव उनका वही रहेगा, लेकिन मिलावट खोरी से बाज नहीं आएंगे जब 25 किलो दूध में 40 किलो पनीर तैयार कर लेते हैं, 10 किलो दूध में 20 किलो दूध तैयार कर लेते हैं। तो यह बीमारी किसके ऊपर जाएगा जनता के ऊपर छोटे-छोटे बच्चों के ऊपर,
वही मनुष्य के डॉक्टर के बस में हो जाते हैं और अपने घर का यहां तक की रकम गहना भी भेज देते हैं।
चाहे मार्केटिंग इंस्पेक्टर हो चाहे स्वास्थ्य विभाग हो चाहे नगर निगम हो, इस मामले से वह वाकिफ है, लेकिन अपने कर्तव्य और निष्ठा से परे हैं। जिसको शुद्ध मलाई रबड़ी मिल रहा है।
पब्लिक प्लेस पर उनका क्या मतलब है।
6--लेकिन मैं सरकार को अवगत कराना चाहता हूं अगर पर्यावरण को शुद्ध प्रकृति को शुद्ध करना चाहती है। और जगह-जगह पेड़ों की कटाई धड़ल्ले से हो रही है , सरकार से गुजारिश है जो मनुष्य प्रकृति से खेल रहा है इसको रोका जाए, इससे बड़ा धर्म कोई धर्म नहीं है और कठोर कार्रवाई करने की जरूरत है जो की जीव, जंतु, मनुष्य, सभी का सुखमय में जीवन बनेगा।