
पं हरिराम द्विवेदी जी काशी में रहते ही नहीं काशी को जीते थे। गंगा के प्रति उनका गहरा लगाव था। उनकी ज्यादातर रचनाएँ माँ गंगा पर आधारित हैं। उनकी कविताएं जीवन के विविध पक्षों पर प्रभाव डालती हैं। कविताओं में भावनाओं का प्रवाह था। उनकी कविता "नदी को बहने दो" संकटमोचन फाउंडेशन का थीम सॉंग है। द्विवेदी जी 'ट्रेंड सेटर' थे। 'नदियो गइल दुबराय' में गंगा जी के प्रवाह और चौड़ाई की कमी पर द्रवित कर देने वाली कविता लिखी। उक्त बातें काशी की पत्रकारिता शीर्षक पर पंद्रह दिवसीय काशी केंद्रित कार्यशाला- "काशी:संस्कृति, परम्परा एवं परिवर्तन" के पंद्रहवें दिन प्रथम सत्र में संकट मोचन मन्दिर के महंत प्रो विश्वंभर नाथ मिश्र ने भारत अध्ययन केंद्र, सभागार, बीएचयू में कही। पंडित हरिराम द्विवेदी के स्मृति पर आयोजित इस सत्र में उनके संस्मरण में संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो विश्वंभर नाथ जी ने कहा कि संकटमोचन संगीत समारोह में उद्घोषक के रूप में उनको एक अलग पहचान मिली। रेडियो प्रस्तोता के रूप में भी वो किसानों और विद्वानों से सहजता से जुड़ते थे। ऐसे सादगी से भरे विशिष्ट व्यक्तित्व के कृतित्व को भी पहचान मिलनी चाहिए। पं हरिराम जी को निश्चित रूप से पद्म पुरस्कार दिया जाना चाहिए। जिससे उस पुरस्कार की गरिमा बढ़ेगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो राम सुधार सिंह ने कहा कि रचनाकार एक ऐसी दुनिया की कल्पना करता है जहाँ शोषण न हो। हरि भैया की कविता और व्यक्तित्व एक दूसरे मे समाहित थे। उनका जाना काशी की क्षति है। वो करुणा से भरे हुए थे। ऐसे दौर मे जब सब एक दूसरे दूर हो रहे हैं उन्होंने एक बड़ा परिवार बनाया था। ऐसा स्नेह कहीं नहीं मिलता। हरि भैया लोक को बांध कर रखते थे। उनके भाव का अद्भुत संसार है। उनके गीतों में ग्राम्य संस्कृति और पूर्ण परम्परा का प्रभाव दिखता था। "बदरा बरसे त बरसे अंगनवा न भीजे हो" व "अभी और चलना है" गीत के माध्यम से उनकी जिजीविषा और उनके रचनाधर्मिता को याद किया।
कार्यशाला के दूसरे सत्र में ही प्रो श्रीमती शांति वाजपेयी जी की स्मृति में हुई चर्चा के उपरांत सोनभद्र के रचनाकार जगदीश पंथी को 'पं हरिराम द्विवेदी स्मृति पुरस्कार' प्रदान किया गया। इस अवसर पर साहित्यकार जगदीश पंथी ने कहा कि_ "हरि भैया सदैव उन्हें भोजपुरी में कविताएं लिखने को प्रेरित करते थे।" इस अवसर पर उन्होंने अपनी रचनाएँ 'निर्बल के बल बनल जाई हो', "ए मोर माई ए मोर भईया" नामक स्वरचित गीत सुनाकर उन्होंने प्रतिभागियों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम में विषय प्रस्तावना प्रो प्रभाकर सिंह , स्वागत भाषण डॉ अवधेश दीक्षित, संचालन डॉ अमित पांडेय व धन्यवाद ज्ञापन डॉ अभिजीत दीक्षित ने किया। इस अवसर पर उपस्थित गणमान्य लोगों में प्रो सिद्धनाथ उपाध्याय, प्रो राणा पी बी सिंह, प्रो पी के मिश्र, प्रो सदाशिव द्विवेदी, डॉ दयाशंकर त्रिपाठी, डॉ सीमा मिश्रा, डॉ नीलम मिश्रा, उमाशंकर गुप्ता, आलोक चतुर्वेदी, धनंजय, अभिषेक मिश्र, डॉ मलय झा, अभिषेक यादव, डॉ सुजीत चौबे, अमित राय, अमित सिंह,अरविंद कुमार मिश्र बलराम यादव आदि गणमान्य लोग उपस्थित थे।
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