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वाराणसी की साहित्यिक और सांस्कृतिक धरती ने मंगलवार रात एक अनमोल रत्न खो दिया। प्रख्यात साहित्यकार, हास्य कवि और पत्रकार स्वर्गीय मोहनलाल गुप्त 'भैयाजी बनारसी' के सुपुत्र, कवि और रचनाकार राजेंद्र गुप्त ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। 11 बजे रात को,  जीवन की अंतिम सांस के साथ, उन्होंने अनंत यात्रा की ओर प्रस्थान किया। 

राजेंद्र गुप्त के पुत्र और वाराणसी प्रेस क्लब के अध्यक्ष, वरिष्ठ पत्रकार राजेश गुप्ता ने बताया कि एक सप्ताह पहले एक मंजिल सीढ़ी से गिरने के कारण उनके पिता गंभीर रूप से घायल हो गए थे। दुर्गाकुंड के एक निजी अस्पताल के आईसीयू में भर्ती राजेंद्र गुप्त वेंटिलेटर पर जीवन और मृत्यु के बीच जूझ रहे थे। मंगलवार रात, यह जंग हारकर वे हमेशा के लिए शांत हो गए।

राजेंद्र गुप्त के निधन की खबर ने साहित्य जगत, पत्रकारिता और राजनीतिक गलियारों में शोक की लहर दौड़ा दी। उनकी रचनाओं ने न केवल पाठकों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरी, बल्कि समाज को गहरे विचार भी दिए। उत्तर प्रदेश के मंत्री रविंद्र जायसवाल सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने उनकी स्मृति को नमन करते हुए गहरा दुख व्यक्त किया। 

बुधवार सुबह, मणिकर्णिका घाट पर राजेंद्र गुप्त की अंतिम यात्रा पूर्ण होगी, जहां गंगा के तट पर उनकी आत्मा को विदाई दी जाएगी। उनके शब्द, उनकी रचनाएँ और उनकी हास्य-भरी कविताएँ हमेशा बनारस की गलियों में गूँजती रहेंगी। 

राजेंद्र गुप्त का जाना केवल एक व्यक्ति का अवसान नहीं, बल्कि एक युग का अंत है। उनकी स्मृति को सादर नमन।

रिपोर्ट धनेश्वर साहनी

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