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वाराणसी की सेकेंड लाइफ लाइन कही जाने वाली वरुणा नदी के किनारे मौजूद रामेश्वर महादेव मंदिर का संरक्षण होगा। योगी सरकार ने ये फैसला लिया है। उत्तर प्रदेश में प्राचीन स्मारकों, स्थानों को संरक्षित करने के तहत यह अधिसूचना जारी की गई है। वरुणा के किनारे बसे पौराणिक महत्व के रामेश्वर महादेव मंदिर को संरक्षित करने के लिए राज्य पुरातत्व विभाग ने जिला प्रशासन को लेटर भेजा है।

एक माह तक दर्ज करा सकते हैं आपत्ति

रामेश्वर महादेव जो लगभग 0.097 हेक्टेयर में फैला है, को संरक्षित करने के लिए जारी अधिसूचना पर यदि किसी भारतीय नागरिक को आपत्ति है तो वह अपनी आपत्ति दर्ज करा सकता है। यह आपत्ति अधिसूचना के बाबत जारी नोटिस रामेश्वर महादेव मंदिर में चस्पा होने के बाद प्रमुख सचिव संस्कृति विभाग और उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग में दर्ज कराई जा सकती है। एक माह के भीतर ही इन आपत्तियों का निबटारा किया जाएगा।

ब्रह्म हत्या पाप से मुक्ति को श्रीराम ने की थी पूजा

वाराणसी जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर बड़ागांव-जंसा मार्ग पर वरुणा किनारे रामेश्वर महादेव मंदिर है। पंचकोशी यात्रा के तृतीय पड़ाव स्थान अति प्राचीन रामेश्वर महादेव मंदिर की पौराणिक मान्यता है। कहते कि श्री राम ने रावण वध के बाद कुम्भोदर ऋषि से ब्रह्म हत्या के प्रायश्चित उपाय जानने के बाद चौरासी कोस की काशी यात्रा प्रारम्भ की थी। ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति के लिए संध्याकाल में वरुणा नदी के किनारे एक मुट्ठी रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और महादेव की पूजा कर ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति के लिए प्रार्थना की।

सिंधिया परिवार ने कराया निर्माण, मराठों की देवी का भी है मंदिर

प्रमुख तीर्थ स्थल होने के कारण सिंधिया राज परिवार ने यहां मंदिर का निर्माण कराया। 18वीं शताब्दी में वरुणा नदी के तट पर श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग की महत्ता को समझते हुए ग्वालियर के सिंधिया राज परिवार के जनकोजी राव सिंधिया ने विशाल मंदिर व वरुणा नदी के तट पर घाट और बारजा का ग्वालियर में तराशे गए लाल पत्थर से निर्माण शुरू कराया।।

जीवाजी राव सिंधिया ने इस कार्य को पूर्ण कराया। सिंधिया राजघराने के साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वालीं अहिल्याबाई ने भी अपना योगदान दिया। वाराणसी रामेश्वर तीर्थ धाम में ही महाराष्ट्र के मराठों की देवी मां तुलजा के साथ साथ मां दुर्गा का भी मंदिर है ।

शिव-राम के मिलन से पड़ा रामेश्वर नाम

किसी जमाने में यह इलाका करौंदा के पेड़ से भरा था, इस वजह से इस क्षेत्र को करौना गांव कहा जाता था। श्रीराम द्वारा शिवलिंग की स्थापना और महादेव की पूजा करने से सनातनी लोगों ने इसे शिव और राम का आरंभिक मिलन मानते हुए रामेश्वर महादेव का नाम दिया। पंचकोशी तीर्थ यात्रा के दौरान रामेश्वर महादेव एक महत्वपूर्ण स्थान है।

पूर्वांचल में प्रसिद्ध है यहां लगने वाला लोटा-भंटा मेला

रामेश्वर महादेव मंदिर क्षेत्र में प्रतिवर्ष अगहन मास में छठ पर ‘लोटा -भंटा’ का प्रसिद्ध मेला लगता है। महादेव के भक्त वरुणा नदी में डुबकी के बाद रामेश्वर महादेव में पूजा-अर्चन करके बाटी, चोखा अौर दाल-चावल बनाकर भगवान शिव को भोग भी लगाते हैं। लोटा -भंटा मेला पूर्वांचल का सबसे बड़ा मेला है जहां हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं का रेला उमड़ता है।

 

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