आर जी कर मामले में पीड़िता के साथ हुई बर्बरता के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के गर्भ से एक नये नाम ने जन्म लिया है। उसे तिलोत्तमा कहा जाता है -- वह जो अपने अंदर सभी सर्वश्रेष्ठ का समावेश करती है। तिलोत्तमा के न्याय के लिए एकजुटता के संघर्ष ने न केवल बंगाल, बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। हजारों की संख्या में स्व-संगठित नागरिक, अपनी अंतरात्मा को जगाते हुए एकजुटता के साथ सड़कों पर उतर आए हैं।
द वेस्ट बेंगाल जूनियर डॉक्टर्स आर्गनाइजेशन और द ज्वाइंट प्लेटफॉर्म ऑफ डॉक्टर्स (चिकित्सकों का संयुक्त मंच) इसमें सबसे आगे हैं। सभी वामपंथी जन संगठन अपने निरंतर शांतिपूर्ण कार्यवाहियों के जरिए न्याय के लिए दृढ़ प्रतिबद्धता का प्रदर्शन कर रहे हैं। वाम मोर्चे के मजबूत समर्थन का अर्थ है कि आवाजें पूरे राज्य में, शहरों से लेकर सुदूर इलाकों के गांवों तक पहुंच गई हैं,
जहां लोग एकजुटता के साथ इकट्ठा हो रहे हैं। युवा और बूढ़े, महिला और पुरुष, सभी समुदाय और सभी क्षेत्रों के लोग रोजमर्रा के विरोध प्रदर्शनों में थकते नहीं दिखते। दरअसल, ऊर्जा और विरोध की आवाज़ें दिन-प्रतिदिन और भी ज़्यादा मज़बूती से गूंज रही हैं।
इन विरोध प्रदर्शनों से यह स्पष्ट हैं कि न्याय की मांग सिर्फ़ एक व्यक्ति की गिरफ़्तारी से ही समाप्त नहीं होती। न्याय का अर्थ है भयावह अपराध, भ्रष्टाचार, संरक्षण और इसे छिपाने में शामिल सभी लोगों के पीछे की सांठगांठ को लक्षित करना और उसे खत्म करना ; उस सड़ी हुई व्यवस्था को खत्म करना --
जो एक अपराधी, एक तथाकथित नागरिक स्वयंसेवक, को एक सार्वजनिक अस्पताल में एक युवा डॉक्टर का बलात्कार करने में सक्षम बनाती है और उसे भरोसा है कि वह इससे बच जाएगा। और सच यह है कि अगर हर बिंदु पर जवाबी कार्रवाई और संघर्ष नहीं होता, तो वह बच जाता। यह आंदोलन यह आशा बंधाता है कि न्याय को खत्म करने वाली सभी प्रतिक्रियावादी ताकतों को सैकड़ों और हज़ारों एकजुट लोगों द्वारा चुनौती दी जा सकती है,
उनका विरोध किया जा सकता है और उन्हें पटकनी दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई और सीबीआई द्वारा कोर्ट को दी गई रिपोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, "ऐसे विवरण बताती है, जो ज्ञात से कहीं ज़्यादा बुरे हैं।"
डॉक्टरों और विरोध प्रदर्शनों को शैतानी बताने वाली टीएमसी सरकार को पीछे हटना पड़ा है और कुछ मांगों को स्वीकार करना पड़ा है। संघर्ष अलग-अलग रूपों में जारी है।
बलात्कार की संस्कृति जुड़ी है व्यवस्था की असमानता से
इस लेख में मैं आरजी कर मामले के एक पहलू पर नज़र डालूंगी, जो बलात्कार की संस्कृति के विभिन्न आयामों से संबंधित है और जिसे सत्तारूढ़ पार्टी, टीएमसी और उसके प्रतिनिधियों ने ऐसे अरक्षणीय कृत्य के लिए अपने बचाव के विभिन्न चरणों में पेश किया था।
न्याय के लिए लड़ने वालों के रूप में, महिला संगठनों और आंदोलनों ने सीखा है कि ये संस्कृति भारत में महिलाओं की दोयम दर्जे की स्थिति की व्यवस्थागत और संरचनात्मक प्रकृति से जुड़ी हुई हैं। वास्तव में भारत में यौन उत्पीड़न और लिंग और जाति आधारित बर्बरता के मामलों की जड़ें जन्म से लेकर मृत्यु तक पुरुषों और महिलाओं के बीच व्यवस्थागत असमानता में हैं। घोर असमानताओं वाले देश में कामकाजी वर्ग की महिलाओं, विशेष रूप से ग्रामीण गरीब महिलाओं की असुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों में जोखिम, व्यवस्था की संरचना में ही निहित है, जिस पर ग्रामीण अभिजात वर्ग, ठेकेदारों और इसी तरह के लोगों का वर्चस्व है। भारत में पूंजीवाद द्वारा अपनाई गई
जहरीली जाति व्यवस्था उस संरचना का एक हिस्सा है, जो दलित और आदिवासी महिलाओं के खिलाफ हिंसा के आयामों को और तीखा बनाती है। भारत में इन विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में ही बलात्कार की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।
महिला संगठनों के संयुक्त संघर्षों और महिलाओं की व्यक्तिगत उपलब्धियों ने भी, मिलकर एक ऐसी मजबूत ताकत का निर्माण किया है,
जिसने कई बाधाओं को तोड़ा है। बहरहाल, इन सफलताओं को प्रतिक्रियावादी ताकतों द्वारा कमतर आंकने और विभिन्न तरीकों से इसे कमज़ोर करके उसका मुकाबला करने की कोशिश की जाती है। यह महिलाओं की प्रगति और सार्वजनिक और निजी स्थानों में समान अधिकारों के उनके दावे के खिलाफ़ एक तरह की प्रतिक्रिया है। इस प्रतिक्रिया का एक हिस्सा बलात्कार समर्…
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