शहाबगंज चंदौली। स्थानीय विकासखण्ड के सिहोरियां गांव के मस्जिद के ईमाम हाफिज नुरैन कहते है की हर मोमिन को जिंदगी में कम से कम एक बार एतकाफ पर बैठना चाहिए। एतकाफ पर बैठने से दो हज व दो उमरा का सवाब मिलता है।
यह सुन्नते किफाया है। यानी एक मोमिन भी मस्जिद में एतकाफ पर बैठता है तो अल्लाह उस पूरी बस्ती से अजाब हटा लेगा।
अगर कोई भी शख्स उस मोहल्ले की मस्जिद में एतकाफ पर न बैठे तो पूरी बस्ती के लोग गुनाहगार हो जाते हैं।उन्होंने बताया कि वैसे तो रमजानुल मुबारक का हर लम्हा रहमतों भरा है। इस महीने में अल्लाह अपने बंदों पर रहमत नाजिल करता है।
इस महीने को तीन अशरों में बांटा गया है। तीसरे अशरे का भी मोमिनों को बेसब्री से इंतजार रहता है। इसी अशरे में एतकाफ पर बैठा जाता है। इसका मर्तबा इसलिए और बढ़ जाता है कि आखिरी अशरे में पांच पाकीजा रातें हैं जिन्हें ताक रात भी कहते हैं।
इन में एक शबेकद्र की रात होती है। हदीस में आया है कि एतकाफ का सवाब एक हजार साल की इबादत के बराबर है। हुजूर सल्लाहो अलैह वसल्लम आखिरी अशरे में एतकाफ पर बैठते थे।
क्या है एतकाफ।रमजान की 20वीं तारीख को अस्र की नमाज के बाद मस्जिद में दाखिल हुआ जाता है। इसके बाद ईद का चांद निकलने तक मस्जिद में ही रहना होता है। एतकाफ उन मस्जिदों में बैठना अफजल है जिनमें पांचों वक्त जमात से नमाज होती है। औरतें घर पर एतकाफ पर बैठ सकती हैं।
एतकाफ की कुछ जरूरी बातें
बेवजह मस्जिद से न निकलें
अधिक से अधिक इबादत व तिलावत करें
जिक्रे इलाही में मशगूल रहें
दुनियावी बातों से दूर रहें
मस्जिद में कम बोलें व शोर न मचाएं
रमजान के कायदे
सवाल- कितनी उम्र के बच्चे पर रोजा फर्ज है?
जवाब-15 साल के बच्चे पर रोजा फर्ज है। इससे कम उम्र के समझदार बच्चे द्वारा भी रोजा रखना सही है। पर वाजिब नहीं है।सवाल- दूसरों की बुराई करने से रोजे पर क्या फर्क पड़ता है?जवाब-रोजे में दूसरों की बुराई करना हराम है लेकिन रोजा नहीं टूटेगा।सवाल- रोजेदार दाढ़ी मुड़वा सकते हैं?
जवाब-नहीं, रोेजे की हालत में दाढ़ी मुड़वाना हराम है। पर रोजा नहीं टूटेगा।सवाल - रोजे में खून की जांच कराई जा सकती है?
जवाब-अगर कमजोरी न हो तो खून की जांच कराई जा सकती है।सवाल - अगर कोई रोजेदार किसी को बचाने के प्रयास में दरिया में कूदे और सिर डूब जाए तो क्या रोजा टूट जाएगा?