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इस पावन पर्व पर श्री काशी विश्वनाथ धाम में पूजा-पाठ का आयोजन किया जायेगा, जिसमे शाम में 06:00 बजे गंगेश्वर् महादेव मन्दिर पर रुद्राभिषेक तथा इसके उपरांत मन्दिर प्रांगण में स्थित माँ गंगा जी के विग्रह पर पूजा-पाठ संपन्न किया जायेगा। इसी श्रृंखला में कल सायंकाल वेला में मंदिर चौक (शंकराचार्य चौक) स्थित शिवार्चनम मंच से मां गंगा एवं महादेव की स्तुति में संगीतमय भजन संध्या "गंगार्चनम" का आयोजन किया जाएगा l

 

"गंगावतरण की पौराणिक कथा"
 मां गंगा को सनातन परंपरा में ब्रह्मदेव के कमंडल से उत्पन्न माना जाता है। पौराणिक कथानक के अनुसार चक्रवर्ती सम्राट सगर के अश्वमेध यज्ञ के आयोजन में अश्व चोरी हो गया। सम्राट सगर के पुत्रों ने अश्व को ढूंढते समय कपिल मुनि से धृष्टता कर दी। क्रोधित कपिल मुनि ने सगर पुत्रों को भस्म कर दिया। कालांतर में सम्राट सगर के वंशज भगीरथ ने अपने इन भस्म बांधवों की मुक्ति हेतु ब्रह्मदेव की घोर तपस्या की। ब्रह्मदेव ने मुक्ति का उपाय मां गंगा की जलधारा को बताया।

 

 

परंतु मां गंगा का वेग पृथ्वी के लिए असहनीय था अतः मां गंगा का धरावतरण असंभव प्रतीत होता था। दृढ़ संकल्प के स्वामी सम्राट भगीरथ ने हार नहीं मानी। भगीरथ ने इस समस्या के समाधान हेतु महादेव शंकर की अखण्ड साधना की। महादेव के प्रसन्न होने पर भगीरथ ने अनुरोध किया कि गंगा जी के वेग को महादेव अपनी जटाओं में धारण कर मंद कर दें जिससे पृथ्वी माता, गंगा जी का प्रवाह धारण कर सकें। महादेव ने भगीरथ की याचना स्वीकार कर ली। इस प्रकार गंगा मां का धरावतरण संभव हो सका।

 

"काशी की गंगा"
पौराणिक कथानक के अनुसार पांड्य नरेश पुण्यकीर्ति ने गंगा जी से यह वर मांगा कि वह प्रतिदिन गंगा मां का देवी स्वरूप में साक्षात दर्शन कर सकें। तब गंगा जी ने सम्राट से कहा कि इसके लिए सम्राट को गंगा जी के गृहनगर में निवास करना होगा। सम्राट की जिज्ञासा पर गंगा जी ने यह रहस्य बताया कि उनका गृहनगर काशी है।

 

 

गंगा जी ने बताया कि अपने प्रवाह के क्रम में वह महादेव शंकर की जटाओं से मुक्त हो हिमालय शिखरों से उतर प्रयाग पहुंचीं। प्रयाग में यमुना जी की भी अतुलित जलराशि धारण कर विराट स्वरूप में मां गंगा अपने मंथर प्रवाह में गतिमान हो मार्ग में आने वाले विस्तृत भूखंडों को स्वयं में समाहित करते हुए काशी की सीमा पर पहुंचीं। काशी के पुराधिपति भगवान विश्वनाथ जी ने गंगा जी का प्रवाह काशी सीमा पर अवरुद्ध दिया। इससे गंगा जी का सम्राट सगर के पूर्वजों के भस्म होने के स्थल तक जाने का मार्ग अवरूद्ध हो गया।

 

 

भगीरथ को गंगावतरण से अभीष्ट पूर्वजों की मुक्ति का अपना मनोरथ असिद्ध होता जान पड़ा। मनोरथ की सफलता हेतु भागीरथ एवं मां गंगा ने भगवान विश्वनाथ से प्रवाह मुक्त करने की प्रार्थना की। भगवान विश्वनाथ ने मुक्त प्रवाह हेतु गंगा जी से तीन वचन लिए, प्रथम यह कि गंगा जी काशी के घाटों को अपने प्रवाह से क्षतिग्रस्त नहीं करेंगी। दूसरा यह कि गंगा जी का कोई जलीय जन्तु काशी में मनुष्यों को क्षति कारित नहीं करेगा। श्री विश्वनाथ जी ने तीसरा वचन यह लिया कि गंगा जी अपने साक्षात देवी स्वरूप में काशी में ही विराजेंगी। तब से काशी ही गंगा जी का गृहनगर है।

 

"अपने घर में गंगा जी का उत्सव"
इन्हीं पौराणिक आख्यानों एवं सनातन परंपरा के निर्वाह में इस वर्ष श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास भव्य आयोजन कर गंगा जी का महोत्सव मना रहा है। धाम परिसर में स्थित गंगा मंदिर में गंगा आराधना पूजा संपन्न की जाएगी , तथा सांध्यवेला में दिव्य सांस्कृतिक भजन संध्या "गंगार्चनम" आयोजित की जायेगी।

 

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास "गंगार्चनम" आयोजन में सनातन मतावलंबियों को ससम्मान सादर आमंत्रित करता है। किन्हीं कारणों से धाम में आयोजित कार्यक्रमों में सम्मिलित न हो सकने वाले श्रद्धालु श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल फेसबुक एवं यूट्यूब चैनल पर ऑनलाइन सहभागिता सुनिश्चित कर सकते हैं। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास सभी आने वाले श्रद्धालुओं के स्वागत हेतु तत्पर है।
 

 

 

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