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लखनऊः स्वामी प्रसाद को सबसे ज्यादा पीड़ा उन्हें इस बात की है कि पार्टी के अंदर भी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव उनके खिलाफ आ रहे बयानों पर कोई लगाम नहीं लगा रहे हैं। पार्टी नेतृत्व पर दलितों और पिछड़ों को उचित भागीदारी न दिए जाने का जो आरोप उन्होंने लगाया है, वो दरअसल राज्यसभा चुनाव से जुड़ा है। यहां तीन में दो टिकट सामान्य वर्ग को दे दिए गए हैं। इससे भी स्वामी प्रसाद क्षुब्ध बताए जा रहे हैं। टिकट वितरण में उनकी मानी जानी तो दूर, महासचिव होने के बावजूद कोई जानकारी तक नहीं दी गई। बताते हैं कि जया बच्चन को पांचवीं बार प्रत्याशी बनाए जाने के स्वामी प्रसाद खिलाफ हैं। अखिलेश से अलग राह पकड़ने की ओर बढ़ाए कदम


सूत्रों का कहना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने अखिलेश यादव से अलग राह पकड़ने की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। महासचिव पद से उनका इस्तीफा दोतरफा लिटमस टेस्ट की तरह है। एक, सपा नेतृत्व उनके इस कदम से कितना दबाव में आता है। दूसरा, किसी अन्य दल की तरफ से कितना महत्व मिलता है। सूत्र बताते हैं कि सपा नेतृत्व के दबाव में आने पर आगामी लोकसभा टिकट वितरण में उनके कहने से कुछ टिकट दिए जा सकते हैं। स्वामी प्रसाद मौर्या की पुत्री संघमित्रा बदायूं से भाजपा सासंद हैं, जहां से सपा ने धर्मेंद्र यादव को टिकट दे दिया है। स्वामी प्रसाद अपनी पुत्री के लिए आंवला (बरेली) से टिकट चाहते हैं।


फर्रुखाबाद के टिकट से नहीं हैं खुश सूत्रों का कहना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य नहीं चाहते थे कि फर्रुखाबाद से डॉ. नवल किशोर शाक्य को प्रत्याशी बनाया जाए। डॉ. शाक्य की शादी संघामित्रा से हुई थी, लेकिन बाद में तलाक हो गया था। स्वामी प्रसाद धार्मिक आडंबरों पर लगातार हमला बोल रहे हैं और प्रभु की प्राण प्रतिष्ठा को भी अवैज्ञानिक धारणा बता रहे हैं। ऐसे में सपा नेतृत्व के भगवान शालिग्राम की स्थापना से पहले पूजा-अर्चना का कार्यक्रम भी उन्हें अच्छा नहीं लगा।

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