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उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे बड़ा और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य, लंबे समय से माफियागिरी के लिए कुख्यात रहा है। 1980 और 1990 के दशक में माफिया सरगनाओं का दबदबा इतना था कि उनकी तूती बोलती थी। अपहरण, फिरौती, अवैध कब्जे और ठेके हासिल करना उनके साम्राज्य का हिस्सा था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, विशेष रूप से 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद, माफियागिरी का स्वरूप बदलता दिखाई दे रहा है। माफिया अब अपराध की अंधेरी गलियों से निकलकर व्यापार और वैध व्यवसायों की दुनिया में कदम रख रहे हैं, जो एक नया और जटिल परिदृश्य प्रस्तुत करता है

पहले उत्तर प्रदेश में माफिया जैसे अतीक अहमद, विजय मिश्र, मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह, सुशील मुंछ, मुन्ना बजरंगी आदि जैसे अनेक नाम आतंक का पर्याय थे। ये लोग न केवल अपराध जगत में सक्रिय थे, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव भी रखते थे। उनकी गतिविधियाँ अवैध शराब, रियल एस्टेट, खनन और ठेकेदारी तक फैली हुई थीं। इन माफियाओं ने समाज के कमजोर वर्गों को डराकर और स्थानीय प्रशासन को प्रभावित कर अपनी सत्ता कायम की थी।

योगी सरकार का प्रभाव और बुलडोजर नीति:

2017 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद माफियागिरी के खिलाफ सख्त कार्रवाई शुरू हुई। सरकार ने 'बुलडोजर नीति' के तहत माफियाओं की अवैध संपत्तियों को जब्त या ध्वस्त किया।

आँकड़ों के अनुसार, 2018 से अब तक 68 प्रमुख माफियाओं की 3864 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति जब्त की गई। इसके अलावा, 10,720 से अधिक मुठभेड़ों में 190 से ज्यादा अपराधी मारे गए और 23,000 से अधिक गिरफ्तार किए गए। 

अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी, विजय मिश्र जैसे बड़े माफिया या तो जेल में हैं या उनकी मृत्यु हो चुकी है। इस सख्ती ने माफियाओं को अपराध के पारंपरिक रास्तों से हटने के लिए मजबूर किया।

माफिया से व्यापारी तक का बदलाव

माफियागिरी पर लगाम लगने के बाद कई अपराधी अब वैध व्यवसायों में निवेश कर रहे हैं। रियल एस्टेट, होटल, स्कूल-कॉलेज और ठेकेदारी जैसे क्षेत्रों में माफिया अपने काले धन को सफेद करने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ माफिया राजनीति में भी प्रवेश कर रहे हैं, जहाँ वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर सामाजिक वैधता हासिल करने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए, कई माफिया अब बिल्डरों और ठेकेदारों के रूप में सामने आ रहे हैं, जो सरकारी योजनाओं और निवेश परियोजनाओं में हिस्सेदारी ले रहे हैं। यह बदलाव न केवल उनके लिए आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि सामाजिक स्वीकार्यता भी दिलाता है।

माफियाओं का व्यापारी बनना एक दोधारी तलवार है। एक ओर यह अपराध को कम करने में मदद करता है, वहीं दूसरी ओर यह अर्थव्यवस्था और समाज में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकता है। माफिया अपने पुराने नेटवर्क का इस्तेमाल वैध व्यवसायों में अनुचित लाभ लेने के लिए कर सकते हैं। इसके अलावा, प्रशासन और पुलिस के लिए ऐसे लोगों की गतिविधियों पर नजर रखना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि वे अब अपराधी के बजाय 'व्यापारी' की पहचान के साथ काम करते हैं।

उत्तर प्रदेश में माफियागिरी का स्वरूप निश्चित रूप से बदल रहा है। सरकार की सख्त नीतियों ने माफियाओं को अपराध की दुनिया छोड़कर वैध व्यवसायों की ओर धकेला है। लेकिन इस बदलाव ने नई चुनौतियाँ भी खड़ी की हैं। समाज और प्रशासन को चाहिए कि वे इस नए परिदृश्य पर पैनी नजर रखें, ताकि माफियागिरी का यह नया चेहरा भ्रष्टाचार और अनैतिकता का नया रूप न ले सके।

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