Shaurya News India
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बारिश की वजह से बाढ़ का खतरा ऊपर है। प्रदेश में बाढ़ से प्रभावित जिलों की संख्या बढ़कर 24 हो गई है।एक ओर ग्रामीण इलाकों में लोग अपना घर छोड़ने को मजबूर हैं, वहीं दूसरी ओर शहरों में भी जलभराव और जनजीवन पर असर साफ नजर आने लगा है।

प्रशासन हुआ अलर्ट

प्रदेश के पूर्वी हिस्से, विशेष रूप से बलिया और लखीमपुर खीरी जिलों में स्थिति सबसे ज्यादा गंभीर बनी हुई है। कई गांव टापुओं में तब्दील हो चुके हैं और सैकड़ों लोग अपने बच्चों, पशुओं और ज़रूरी सामान के साथ ऊंचे और सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर रहे हैं।

लखीमपुर खीरी जिले के फुलेरा ब्लॉक के एक गांव के किसान तेज लाल निषाद ने बताया कि उनका पूरा गांव अब टापुओं जैसा दिखने लगा है। उन्होंने कहा, "गांव से करीब 400 मीटर की दूरी पर बहने वाली नदी में जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है। खेत पूरी तरह डूब चुके हैं और फसलें नष्ट हो चुकी हैं। कई घर टूट चुके हैं और सड़कों पर खड़ी गाड़ियां पानी में फंसी हुई हैं।"

छोटी नावों से हो रहा पलायन, जनजीवन ठप
गांव के अधिकतर लोग खेती पर ही निर्भर हैं और अब उनकी आजीविका पर संकट आ गया है। ग्रामीणों ने बताया कि रातोंरात बढ़े जलस्तर के कारण लोगों को बिना तैयारी के अपने घर छोड़ने पड़े। जिनके पास नावें थीं, वे उन्हें सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।

राहत कार्य शुरू कर दिए गए हैं, लेकिन लोग अब सरकार से स्थायी समाधान की मांग कर रहे हैं। तेज लाल का कहना है, "हर साल यही हाल होता है। जब जलस्तर बढ़ता है तो हम डूबते हैं और जब पानी उतरता है तो हमारी जमीन बंजर हो चुकी होती है। सरकार को चाहिए कि वह अस्थायी राहत से आगे बढ़कर दीर्घकालिक समाधान निकाले।"

बलिया समेत 22 अन्य जिलों में भी स्थिति चिंताजनक
बलिया जिले में भी बाढ़ ने लोगों का जनजीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर दिया है। वहां भी ग्रामीण और शहरी इलाके जलमग्न हैं। इसके अलावा बिजनौर, बहराइच, गोंडा, बांदा, भदोही, चंदौली, चिटकूट, इटावा, फर्रुखाबाद, फतेहपुर, गाजीपुर, गोरखपुर, हमीरपुर, जालौन, कानपुर देहात, कानपुर नगर, कासगंज, मिर्ज़ापुर, प्रयागराज, वाराणसी, आगरा और औरैया में कभी भी बाढ़ आ सकती है।

राहत के साथ दीर्घकालिक समाधान की जरूरत
बाढ़ से बार-बार प्रभावित हो रहे क्षेत्रों में लोग अब सरकार से स्थायी समाधान की मांग कर रहे हैं। कई ग्रामीणों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि साल दर साल केवल नावें और राशन देने से समाधान नहीं होगा, बल्कि नदी के जलप्रवाह और बाढ़ नियंत्रण पर ठोस योजना बनाई जानी चाहिए।

 

रिपोर्ट रोशनी

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