Shaurya News India
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 एक ऐसा दिन,जो "गुरु" से ज्यादा महत्व "शिष्य" के लिए रखता है।खोजियों,साधको के लिए तो  एक अभूतपूर्व अवसर होता है आज का दिन !!
          मैं बहुत सौभाग्यशाली हूँ कि आज सुबह-सुबह "गुरु जी" के आश्रम  में जाने औऱ उनके "श्री चरणों" में वंदना का सानिध्य प्राप्त हुआ।
     दोस्त,असाढ़ महीने के "पूर्णिमा" को "गुरु पूर्णिमा" कहते है।
        असाढ़ का महीना यानि पूरी धरती प्यास (गर्मी) से तड़प रही होती है और बादल आसमान में उमड़ रहे हो। धरती की तड़प इतनी ज्यादा होती है कि बादल का  बरसना लाज़मी हो जाता है।
       शिष्य एक धरती की तरह होता है और गुरु उस बादल की तरह ।।
   धरती (शिष्य) की प्यास,बादल (गुरु) को मजबूर कर देती है बरसने को और उस प्यासी धरती पर अमृत जैसे बारिश के बूंदों का गिरना फिर उससे निकलने वाली वो भीनी -भीनी सुगंध (ज्ञान,आत्मावलोकन )सिर्फ मन ही नही आत्मा को झंकृत कर देती है।
      इसीलिए मैं कहता हूँ शिष्य, गुरु को नही खोजता बल्कि गुरु,शिष्य को खोजता है।
           बस प्यास हो हमारे अंदर,तड़प हो कुछ बड़ा करने का, अलग करने का।
      मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना होगी कि आप सबको बहुत अच्छे गुरु का सानिध्य मिले जिससे आपका भौतिक और आध्यात्मिक दोनो भवसागर से पार होने की राह प्रशस्त हो सके।
       दोस्त,यदि आपके  जीवन में भी अंदर से सफल होने की विराट तड़प होगी,गहरी प्यास होगी तो आपके गुरु को आपको खोजते हुए आप तक पहुचना ही होगा।
सिर्फ खुद के अंदर प्यास को जगाओ,बारिस का आना तो नैसर्गिक है।
       मैं हमेशा आपके साथ हूँ---

 

रिपोर्ट  जगदीश शुक्ला

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