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बरेली। ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस के तत्वावधान में वक्फ संशोधन बिल पर एक विचार गोष्ठी आयोजित की गई। जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस गोष्ठी की अध्यक्षता कासिम कश्मीरी ने की, जबकि संचालन सैय्यद जमील अहमद राज एडवोकेट ने किया। इस दौरान वक्ताओं ने बिल के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की और इससे जुड़ी चिंताओं को उजागर किया।
गोष्ठी के दौरान ऑल इंडिया मजलिस के राष्ट्रीय अध्यक्ष, बसी अहमद एडवोकेट ने कहा कि सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड की कार्यशैली को साजिशन बदनाम किया जा रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वक्फ की संपत्तियाँ दो प्रकार की होती हैं। पहली (वक्फ अलल औलाद), यह संपत्तियाँ जमींदारों द्वारा धार्मिक कार्यों के लिए वक्फ की गई थीं। दूसरी (वक्फ अलल खैर), इसमें प्राचीन काल से चली आ रही मस्जिदें, दरगाहें, कब्रिस्तान और इमामबाड़े शामिल हैं, जिनका 1982 में सरकारी सर्वेक्षण के तहत सत्यापन हो चुका है।


गोष्ठी में अन्य वक्ताओं ने भी वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण और उसके अधिकारों पर लगाए जा रहे प्रतिबंधों पर चिंता जताई। सच्चर समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए वक्ताओं ने बताया कि केवल लखनऊ में ही 16 वक्फ संपत्तियों पर सरकारी विभागों का कब्जा है, लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

वक्फ प्राधिकरण के अधिकारों पर रोक लगाना न्यायसंगत नहीं, जबकि अन्य सरकारी ट्रिब्यूनल स्वतंत्र रूप से कार्य कर रहे हैं। वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति का कोई औचित्य नहीं, जबकि अन्य धार्मिक ट्रस्टों में ऐसी व्यवस्था नहीं है। वक्फ संपत्तियों पर अवैध कब्जों के लिए अगर वक्फ बोर्ड को दोषी ठहराया जा रहा है, तो असल में इसका जिम्मेदार कौन है।


वक्ताओं ने कहा कि अगर सरकार वक्फ बोर्ड को “भूमाफिया” मानती है, तो यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि इन कब्जों का असली दोषी कौन है।

साथ ही उन्होंने सवाल उठाया कि अन्य धार्मिक ट्रस्टों की तरह वक्फ बोर्ड को समान अधिकार क्यों नहीं दिए जा रहे। गोष्ठी में विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और वक्फ संपत्तियों के संरक्षण की मांग की।

 

रिपोर्ट फ़ैफ़ी

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