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शुक्रवार का दिन देवी मां लक्ष्मी को समर्पित होता है। इस दिन मां लक्ष्मी जी की पूजा - उपासना की जाती है। मां लक्ष्मी को धन की देवी भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि मां इतनी चंचल है कि वह किसी एक जगह पर अधिक समय तक नहीं रुकती है। ऐसे में मां की कृपा पाने के लिए व्यक्ति को निरंतर इनकी पूजा-उपासना करनी चाहिए।

मां लक्ष्मी, भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं और क्षीर सागर में उनके साथ रहती है। जबकि देवी मां दुर्गा उनकी मां है। प्रस्तुत है कि मां लक्ष्मी की उत्पत्ति और इससे जुड़ी धार्मिक कथा-

विष्णु पुराण के अनुसार, चिरकाल में एक बार ऋषि दुर्वासा ने स्वर्ग के देवता राजा इंद्र को सम्मान में फूलों की माला दी, जिसे राजा इंद्र ने अपने हाथी के सिर पर रख दिया। हाथी ने फूलों की माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। यह देख ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो उठे और उन्होंने राजा इंद्र को शाप दिया कि आपके इस अहंकार की वजह से आपका पुरुषार्थ क्षीण हो जाएगा और आपका राज-पाट छिन जाएगा।

इसके बाद कालांतर में दानवों का आतंक इतना बढ़ गया कि तीनों लोकों पर दानवों का आधिपत्य हो गया। इस वजह से राजा इंद्र का सिहांसन भी छिन गया। तब देवतागण भगवान विष्णु के शरण में जा पहुंचे। भगवान ने देवताओं को समुद्र मंथन की सलाह देते हुए कहा कि इससे आपको अमृत की प्राप्ति होगी, जिसका पान करने से आप अमर हो जाएंगे। इस अमरत्व की वजह से आप दानवों को युद्ध में परास्त करने में सफल होंगे।

भगवान के वचनानुसार, देवताओं ने दानवों के साथ मिलकर क्षीर सागर में समुद्र मंथन किया, जिससे १४ रत्न सहित अमृत और विष की प्राप्ति हुई। इस समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी की भी उत्पत्ति हुई, जिसे भगवान विष्णु ने अर्धांगिनी रूप में धारण किया।

जबकि देवताओं को अमृत की प्राप्ति हुई, जिसका पान कर देवतागण अमर हो गये। कालांतर में देवताओं ने दानवों को महासंग्राम में परास्त कर अपना राज पाट प्राप्त किया। इस अमरत्व से राजा इन्द्र ऋषि दुर्वासा के शाप से भी मुक्त हो गये।

 

ठाकुर अनिकेत शर्मा

 

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